“महाभारत” अच्छा लगता है!
बहुत अच्छी बात है..
पर क्या बनना चाहोगे?
श्री कृष्ण – युद्घ कौशल होते हुवे भी सिर्फ रथ चला लोगे?
युधिष्ठिर – जुआ खेलना सीखोगे?
भीम – दु:शासन का खून पियोगे?
अर्जुन – अपनों के साथ युद्ध लड़ सकोगे?
द्रौपदी – तैयार हो चीर हरण के लिए?
गांधारी – आंखें होते हुवे पट्टी बांध लोगे?
कुंती – जिनके कारण बेटों को कष्ट मिला,
उनके ही साथ रह सकोगे?
भीष्मपितामह – बाणों की शैय्या पर सो सकोगे?
अभिमन्यु – बेदर्द मौत मरना चाहोगे?
शान्तनु – महाभारत की जड़ बनना चाहोगे?
एक भील कन्या के मोहपाश में बंधकर?
सार :
श्रेष्ठ स्वयं ही बनो
(कोशिश की बात मत करना, बनना ही है)
किसी और जैसा मत बनना !
बन न सकोगे!
जरूरत भी नहीं है!
? महावीर मेरा पंथ ?
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