Jainmantras.com – Readers Views

ऐसे बहुत से सन्देश Jainmantras.com को  मिल रहे हैं…

rajesh shah. mumbai :

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विनोदगौतमचंद भंडारी
i am very greatful to join this site,

सिपानी प्रदीप, दिल्ली  
achi bate batane ke liye app ka bahut bahut dhanyvad

शैलेन्द्र  नाहटा:
Thanks for all of u who are behind
The preparations of this side
Aap logo Ki bahut bahut Anumodna

 

स्वाति  शाह:
Superb thoughts
Which u have shared with this site
I learn a lot from this
Thank u so much

शशिकांत  शाह :
Surendraji
Pranam
Apne jaindharm ke bareme jankari di
Lot of thanks
Abhi apke pas se bahut kuch janneka he

 

Sadanand Jain
सुरेन्द्र जी आपका सँदेश सर्वोत्तम है ।जैनदर्शन बहुत विशाल ही नहीं अपितु बहुत जटिल है उसे सही सही समझने और प्रत्येक विषय को ठीक ठीक प्रकार से अपने जहन मे उतारना , उसे आत्म सात करना ; एक भगिरथ प्रयास ही समझिये ।चार अनुयोग , द्रव्यानुयोग , करणानुयोग आदि का उचित स्वाध्याय और उसको स्मृति मे लाना बहुत कठिन कार्य है ।जय जिनेन्द्र

 

Jainmantras.com

ज्ञान की कमी के कारण या ज्ञान की बात जानते हुवे भी उसे अस्वीकार करने के कारण आज तक “जैन धर्म” को अनावश्यक रूप से “जटिल” माना जाता रहा  कि –

जैन धर्म की राह पर चलना कठिन है,
जैन मंत्र साधना करना कठिन है,
मन स्थिर नहीं रहता,
धर्म की बातें रुचिकर नहीं होतीं,
जैन धर्म में कोई लॉजिक नहीं है, इत्यादि.

 

सभी को ये जानकर प्रसन्नता होगी कि
हमारे पास कोई एडमिन टीम ना होते हुवे भी
(सिर्फ मैं और मेरा पुत्र इसमें लगे हुवे हैं).
हम इस साइट को अच्छी तरह से चला पा रहे हैं.

(ये देव, गुरु और धर्म का ही प्रभाव है, शासनदेवों और देवियों
की  कृपा है – अन्यथा ये कार्य संभव ही नहीं हो पाता )

 

पाठक ही हमारी टीम है.
उनके सहयोग और सहभागिता से ही हमारा उत्साह बढ़ा है.

65 वर्ष के जैनी भी जब ये पूछते हैं कि  जैन साधू साध्वियों को परमात्मा की पूजा करने की मनाई क्यों है? जैन साधू नहाते क्यों नहीं हैं, तो बड़ा “शॉक” लगता है.

पाठकों से निवेदन है कि धर्म सम्बन्धी जो भी “शंकाएं” हैं, वो बताएं/लिखें.
जैन धर्म में “शंका” होने पर उसका निवारण करना श्रावक का प्रथम कर्त्तव्य है.
परन्तु “धर्म में श्रद्धा” में कमी करना, मतलब मनुष्य जन्म “हारना” है.

 

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