उवसग्गहरं स्तोत्र अलग अलग गाथा में प्रचलित है.
इस स्तोत्र की रचना प्राकृत भाषा के “गाहा” छंद में हुई है.
(जैन श्रुत ज्ञान में “गाहा” छंद का उपयोग खूब हुआ है).
१. ज्यादा प्रचलित : ५ गाथा वाला स्तोत्र
२. कम प्रचलित : ९, १३, १७ और २१ गाथा वाला स्तोत्र
३. अति प्रभावशाली पर कम प्रचलित : २७ गाथा वाला (बीजाक्षर सहित) स्तोत्र
इस स्तोत्र की महिमा शब्दों में बताना असंभव जैसा है.
कौनसा स्तोत्र गिनें :
वो इस बात पर निर्भर करता है कि हम स्तोत्र क्यों गिनना चाह रहे है.
यदि आप बाधाओं में घिरे हुए हैं- तो छोटा स्तोत्र गिने.
यदि आप विशिष्ट कार्य करना चाहते हैं – तो बड़ा स्तोत्र गिने.
चूँकि सभी लोग “बीजाक्षर” का उच्चारण शुद्ध नहीं कर पाते,
इसलिए किसी आचार्य ने ५ गाथा वाले “उवसग्गहरं” स्तोत्र को ही
२७ बार गिनने का विधान बनाया है.
२७ बार उवसग्गहरं स्तोत्र क्यों गिना जाता है,
वो मैंने
“उवसग्गहरं महाप्रभाविक स्तोत्र” वाली अन्य
पोस्ट में बताया है.
विशेष : उवसग्गहरं स्तोत्र गुणने की विधि
पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर में
उवसग्गहरं स्तोत्र ३ बार पढ़ने
(होंठ हिलाते हुए बस इतना आवाज निकालें की सिर्फ स्वयं को सुनाई दे).
और
“नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग”
मंत्र की एक माला फेरने से
आपको वो मिलता है, जो आप चाहते है.
और वो भी मिलता है, जो आप अभी “सोच” भी नहीं सकते.
नोट:
“घर” पर स्तोत्र अपनी सुविधानुसार पूरी आवाज में पढ़ें
(विशेषतः जब अशांति, बाधाएं और रोग घर में हो).
पढ़ते रहें:
jainmantras.com