सारे भगवान एक से हैं?
करोड़ों लोगों को गुमराह करने के लिए इस वाक्य को हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता है.
सारे भगवान एक से हैं, ये कई लोग कहते हैं.
उन्हें भगवान और देव में अन्तर नहीं पता.
मनुष्य, देव, तिर्यंच और नरक
– ये चार गति हैँ.
सारे मनुष्य एक से हैं?
सारे जानवर एक से हैं?
सभी नर्कवासी एक से हैं?
नहीं!
तब सारे देव एक से कैसे हो सकते हैं?
कहने को तो देव “संगम” भी था,
जिसने अकारण भगवान महावीर को घोर कष्ट दिए,
उसकी पूजा कर सकेंगे?
जिन देवी देवता के आगे प्राणियों की बलि चढती हो,
उन देवी देवता को हाथ भी जोड़ लोगे?
अपना शीश झुका लोगे?
अरे!
वो तो “देखने” योग्य भी नहीं हैं.
प्राणियों के “वध स्थल” पर कभी जाने का मन करता है?
वहाँ धर्म है?
चर्च, गुरुद्वारे और मस्जिद में भी प्राणी नहीं कटते,
तो हिन्दुओं के मंदिरों में प्राणी कटते हों,
सिर्फ इसलिए कि आज तक कटते आए हैं?
कुप्रथा तोड़ने के लिए सद्बुद्धि की जरूरत होती है.
वो आई ही न हो तो कोई सच्चा धर्म कैसे पा सकता है?
विशेष :
जिन जैनों के कुल देवता या कुलदेवी के आगे इस प्रकार की बलि चढ़ती हो वो ये बलि प्रथा बंद कराएं, न हो सके तो कुलदेवता का नया मंदिर बनवाएं आए वहाँ बलि न चढ़ाएं.
मन्दिर बनाने का सामर्थ्य सभी में है.
वहाँ पुजारियों को स्पष्ट कहना पड़ेगा कि अब से हम इस स्थान पर तभी आयेंगे जब धर्म के नाम पर ये हिंसा बंद होगी.
सार
मन्नत का अर्थ से मन से मानना है.
ये मन को मजबूत करता है, और कुछ नहीं!
जितना मन मजबूत होता है,
मन में धारा हुआ कार्य पूरा होता है.
मन में धर्म को धारण करोगे तो धर्मी बनोगे.
मन में अधर्म को धारण करोगे तो अधर्मी बनोगे!
पर सबसे बड़ी विडंबना तो ये है कि
“अज्ञानियों” के हाथों में जब धर्म सत्ता आती है
तब एक बार जो कुप्रथा शुरू होती है
वो हज़ारों वर्षों तक करोड़ों-अरबों लोगों को “छलती” है
धर्म के नाम पर!
इनकी कभी सद्गति होगी?
कोई “हाँ” कह कर तो बताये!
महावीर मेरा पंथ