एक ऐसा व्यक्ति जो वर्षों तक वेश्या के पास रहा हो,
उसके आकर्षण के कारण मंत्री पद तक स्वीकार नहीं करता हो,
क्या ऐसा व्यक्ति किसी भी तीर्थंकरों की अनुपस्थिति
में सर्वोच्च पद उसी भव में प्राप्त कर सकता है?
सामान्य बुद्धि ये तथ्य स्वीकार नहीं करती.
क्या आज का जमाना भी ऐसे व्यक्ति को स्वीकार करेगा?
जबकि ये बात बार बार कही जाती है कि
“जब जागे तब सवेरा”
पाठक सोच रहे होंगे कि ऐसा कौनसा व्यक्ति है
जो इतने दुराचार में फंसा हुआ होकर भी
जिन शासन में पूजनीय हो जाता हो
उसका (उनका) नाम है :
स्थूलिभद्र!
जिसने बाद में ये साबित कर दिया कि दीक्षा लेने के बाद
एक जैन मुनि
कैसे ब्रह्मचर्य को उत्कृष्ट रूप से पालता है.
उनका नाम आने वाली 84 चौबीसी तक लिया जाएगा
(मतलब आने वाली 84 चौबीसी तक उनके जैसा दृष्टांत दूसरा नहीं होगा).
इसीलिए ये श्लोक दिगंबर और श्वेताम्बर
दोनों सम्प्रदायों में एक सा मान्य है:
मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतम प्रभु
मंगलं स्थूलिभद्राद्या जैन धर्मोस्तु मंगलं
रोज पढ़ते रहें.
फोटो:
दीक्षा लेने से पहले स्थूलिभद्र का
कोशा वेश्या के
आवास पर काम भोग में लिप्त होना