gifts from god

प्रभु के पास “मांगने” से “कितना” मिलता है?

एक लम्बी भीड़ देखने को मिलती है, किसी चमत्कारी मंदिर/तीर्थ में.
भले फिर पूनम के दिन नाकोड़ा तीर्थ हो
या गुरुवार के दिन रांदेर (सूरत) के माणिभद्र वीर!
प्रश्न:
क्या अन्य दिनों में वहां वो प्रभाव नहीं होता?
उत्तर:
अन्य दिनों में भी वो “सोये” हुवे नहीं रहते.
यदि होते, तो उन्हें “जागते देव” नहीं कहा जा सकता.

 

कारण?
उत्तर है : “अन्य” दिनों में “मंदिर” बंद रहता है क्या? नहीं!
प्रश्न:
तो फिर ऐसा क्यों कहा जाता है की “फलाना” वार “फलाने” देव का है.
उत्तर:
ये तो कोई भक्त कभी मुंह से कुछ बोल देता है फिर तो दुनिया पीछे चल पड़ती है.
भक्त को बड़ा संतोष मिलता है इससे की देखो मैंने बोला तो कई लोगों को इससे बहुत फायदा मिला है, तभी तो उस दिन आने लोग बड़ी संख्या में आने लगे हैं.
“वास्तविकता” क्या है, ये तो आप समझ ही गए होंगे.
कुछ अपवादों को छोड़कर यही बात अन्य तीर्थों के बारे में भी समझनी चाहिए.

 

प्रश्न:
तो क्या अधिष्ठायक देव कुछ नहीं करते?
उत्तर:
अधिष्ठायक देव हमारे “पुण्य” को “थोड़ा” पहले “प्रकट” कर सकते हैं.
इससे ज्यादा वो कुछ नहीं कर सकते.
क्योंकि उनके दर्शन करने से हमें कोई “पुण्य” की प्राप्ति नहीं होती.
इसे ऐसा समझे की वे बस हमारा “पुण्य,” जिसका नंबर 3 साल बाद हो, वो 3 महीने में आ सकता है. पर ये भी निश्चित है कि “समय” से पहले “उदित” करने पर हमें हमारे पुण्य का “फल” कम मिलेगा.
बैंक ऍफ़डी समय से पहले वापस लेना चाहेंगे तो क्या “उतना” ही ब्याज मिलेगा? उत्तर है : नहीं.
बस, ऐसा ही “पुण्य” के बारे में समझ लें.

 

यक्ष प्रश्न:
जिस प्रकार पुण्य जल्दी प्रकट हो सकता है उसी प्रकार पाप के उदय भी समय से पहले प्रकट हो सकता है क्या?
(पोस्ट पढ़कर उत्तर दें).

प्रश्न:
पर देखने में तो ये आता है कि ज्यादातर लोग “तीर्थंकरों” से ज्यादा भक्ति तो “अधिष्ठायक” देवों की करते हैं.
उत्तर:
बात सही है. जिसका “काम” “अफसर” से  ही हो जाए, तो फिर उसे “मिनिस्टर” के पास जाने की क्या जरूरत है.
ऐसा क्यों?
क्योंकि अधिष्ठायक देव “शासन रक्षक” देव हैं. “दुष्ट देवों” द्वारा “संघ” पर की गयी “विपदा” को टालते हैं.
इसलिए उनकी स्थिति “द्वारपाल” से बस थोड़ी ही अधिक है.

 

प्रश्न:
तो क्या उनसे कुछ “मन्नत” मांगी ना जाए?
उत्तर:
“उत्तर आपको देना कि क्या आप अपने पुण्य को पहले प्रकट करवाना चाहते हैं?
बड़ा प्रश्न:
आपकी जेब में 10,000 रुपये पड़े हों, उस समय आप किसी भिखारी को ज्यादा से ज्यादा कितना देते हैं?
उत्तर:
(सोचकर)…..10 रुपये!
प्रश्न चिन्ह:
अब सोच लें यदि “भगवान” से कुछ “मांगेंगे” तो वो कितना देंगे? 🙂

 

ब्रह्म सत्य:
“वीतराग भगवान” किसी को “ज्ञान” देने के अलावा “कुछ” नहीं देते.
तो फिर?
“भगवान” के “अतिशयों” के कारण “श्रावकों” को कुछ “मांगने” की जरूरत ही नहीं पड़ती.
जो  “जरूरत” होती है, उससे कई गुना अधिक “भगवान” की शुद्ध मन से भक्ति करने से ही मिल जाता है क्योंकि
तीर्थंकरों की भक्ति करने से “अनंत गुना” पुण्य  स्वत: ही  “प्राप्त” होता है.

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