मैं “समय” हूँ.

“समय” शब्द में “सम” समाया (आया) हुआ ही है.
“समय” किसी की भी तरफदारी (favour) नहीं करता.
और किसी की लिहाज (respect) भी नहीं करता.

कोर्ट के संथारे पर रोक के आर्डर ने पूरे जैन समाज को एक कर डाला.
जो काम संत नहीं कर पाये वो जैन धर्म के लिए ख़राब समझे जाने वाले एक आर्डर ने कर दिया.

 

अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला जितना देरी से आये, उतना अच्छा. तब तक “चारों जैन फिरके” जिनके “मत” एक-दूसरे से “फिरे” हुवे हैं, तब तक उन्हें “एक” होने का “नाटक” करना पड़ेगा.

ये शब्द “खराब” लग सकते हैं (जिस प्रकार कोर्ट का आर्डर हमें बहुत ख़राब लगा था) पर जो जो “मत” अपने को “ऊँचा” दिखाने की कोशिश करते हैं (वास्तव में हैं नहीं क्योंकि “सिद्धांत” तो सबसे ऊँचे “महावीर” के हैं. पर उन्होंने तो अपनी वेश भूषा और क्रियाओं को ही अधिक महत्त्व दिया है अपने आप को सबसे “अलग” दिखाने के लिए), उन्हें “शांत” बैठना पड़ेगा.

 

फिर भी, जैन-धर्म के अनुयायी वास्तव में अहिंसक हैं, ये पूरे विश्व को पता पड़ गया.
कुछ लोग, जिनका खून गरम है, वो कह रहे थे कि “मौन रैली” से कुछ नहीं होने वाला.
विरोध ही करना हो, तो “जबरदस्त” होना चाहिए.

“जबरदस्त” में “जबरदस्ती” कब घुस जाती है, भीड़ को पता ही नहीं पड़ता.

जैन धर्म की “शाख” (goodwill) पूरे विश्व में अब पता पड़ी है.
कई विदेशी और अन्य मत को मानने वाले अब ये इच्छा करने लगे हैं कि वास्तव में जैन धर्म दूसरे धर्मों से “अलग” क्यों दीखता है और इसकी क्या विशेषतायें हैं.

 

जैन धर्म सिर्फ और सिर्फ “आत्म-कल्याण” की बात करता है.
“आत्मा” दिखती नहीं, पर “है,” ये सभी को पता है (पर मानते नहीं).
जो चीज दिखती नहीं, वही सबसे “अमूल्य” होती है.
हमारी “फिक्स्ड एसेट” (fixed assets) सभी को नज़र आती है, पर हमारे “घर के अंदर की बात” तो हम ही जानते हैं.
हमारे लिए वो बहुत “महत्त्वपूर्ण” है इसलिए किसी के सामने उस बात को “प्रकट” नहीं करते.
ऐसा ही “आत्मा” के बारे में समझे.

“आत्मा है” – अजर अमर है – कभी नष्ट नहीं होने वाली है – अलग अलग “शरीर” धारण कर के कर्म को भोगने वाली है -अभी जो स्थिति है, वो पूर्व जन्म के कारण है, इसका स्वीकार भी पूरे मन से हो जाए, तो “सम्यक्तत्व” की नींव पड़ जाती है और व्यक्ति “गलत” कार्य छोड़ कर “सत्कर्म” में लग जाता है और इस प्रकार अपने “मनुष्य” जन्म को सफल कर लेता है.

 

अपने अपने सम्प्रदाय को “बड़ा” बताने वाला कोई कह सकेगा कि 1,18,000 वर्ष पुरानी श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा जो जमीन से ऊपर आज भी स्थित है; वो दिगंबर-श्वेताम्बर” के झगड़े के कारण कोर्ट के आर्डर से कब छूटेगी? झगड़े का नतीजा ये है कि कोर्ट ने “मंदिर” को ताला मार रखा है).

“जैन एकता” का “नाटक” करने वाले क्या इसका उत्तर दे सकेंगे?

समय के गर्भ में क्या “छिपा” है, वो बहुत कम लोग “देख” पाते हैं.

error: Content is protected !!