जैन दर्शन अति सूक्ष्म है.
सामान्य तर्क बुद्धि से इसे मापा नहीं जा सकता
बिना जैन दर्शन पढ़े तर्क बुद्धि से
जैन धर्म के बारे में कहना ऐसा ही है
जैसे कोई इनकम-टैक्स की
सेक्शन 269SS या 269T को जाने बिना
लोन कॅश में ले या कॅश में पेमेंट करे.
(जितना लोन कॅश में लिया है या वापस किया है,
उतने ही रुपये की पेनल्टी आएगी.
सामान्य आदमीं ये बहस कर सकता है कि
इसमें मैंने क्या गुनाह किया)?
क्या हॉस्पिटल्स में दान देना,
भिखारी को भोजन देना,
शिक्षा के लिए दान देना
वास्तव में धर्म है?
जैन दर्शन का उत्तर है
नहीं.
इससे पुण्य का बंध जरूर होता है
परन्तु “आत्मा” का उत्थान नहीं होता.
“आत्मा” मोक्ष में तभी जा सकती है
जब सब त्याग दिया जाय और
मोक्ष साधना के लिए व्यक्ति चल पड़े.
प्रश्न:
सब त्यागने के बाद क्या बचा?
एक दिन भोजन ….छोडो,
एक दिन का मोबाइल प्रयोग ….छोडो,
एक दिन AC का प्रयोग ….छोडो,
तो ही पता पड़ेगा कि
सर्वस्व का त्याग किसे कहते हैं.
जैन दर्शन अति सूक्ष्म है.
बहुत से लोग जैन दर्शन को तनिक भी जानते नहीं हैं
फिर भी कुतर्क बुद्धि से
उस पर सवाल खड़े करते हैं.
ये वैसा ही जैसे एक ओर क्रिकेट के बारे में
मात्र बात करना
और दूसर वास्तव में अच्छा क्रिकेट खेलना.
परन्तु पब्लिक तो बात ऐसे करेगी मानो
खिलाड़ी को क्रिकेट खेलनी आती ही नहीं है.
जबकि हकीकत ये है की पब्लिक को खुद
क्रिकेट खेलना आता नहीं है.
फोटो:
जैन धर्म के अनुसार एक “काल चक्र”
२० कोडाकोड़ी सागरोपम का होता है.
मात्र “एक सागरोपम” का माप भी
अभी किसी कैलकुलेटर से
गिनना संभव नहीं है.
फिर ऐसे २० करोड़ सागरोपम को
२० करोड़ सागरोपम से गुणा करो
तो जो संख्या प्राप्त होगी वो है :
२० कोडाकोड़ी सागरोपम!
एक “सेंचुरी” तो इस गणना के सामने कुछ भी नहीं है.
धन्य है अरिहंत जिनके ज्ञान के आगे
हमारे ज्ञान की मात्रा
“पूरे सागर” में “एक बूँद” जितनी भी “नहीं” है.