पहले करेमि भंते!- भाग 1,2 और 3 अवश्य पढ़ें.
“सामायिक” वीरों का कार्य है.
“सामयिक” एक विधि (Method) है “
१. मन को वश में रखने की
२. बोली को वश में रखने की
३. “शरीर” को वश में रखने की
जिसके ये वश में हो गए, उसने सभी को वश में कर लिया.
कैसे?
सबसे ज्यादा दुःख मनुष्य “मन” से भोगता है.
कई लोग तो बहुत दुःख होने पर भी शांति रखते हैं. और कई छोटी छोटी बातों पर भी “अशांत” हो जाते हैं और सब कुछ होते हुवे भी खूब रोना रोते हैं. “डिप्रेशन” इसी कारण आता है.
इसलिए मन में “धर्म-सूत्र” बोलने से “मन” शुध्द होता है.
कुछ लोग दूसरे हमारे बारे में क्या “कह” रहे हैं, इस “चिंता” से ही दुःख पाते हैं.
यदि इसकी चिंता छोड़ दें, तो जीवन सुखी हो जाए.
“सामायिक” इसी की तो ट्रेनिंग देती है कि “वचन” शुद्धि कैसे हो.
सवेरे और शाम को “धर्म-सूत्र” बोलने से “वाणी” शुद्धि होती है और
“फालतू” शब्द निकलने बंद होते हैं.
फालतू शब्द हैं:
१. “मैं” तो अभी चक्कर में हूँ,
२. फंसा हुआ हूँ,
३. ऐसा करने में कोई “हर्ज़” नहीं है,
४. मैं तो “खाली” पाठ करता हूँ (अभी खुद अपने को “भर” नहीं पाया है – इसीलिए दिन भर “खाली-“खाली” शब्द का मंत्र जाप करके (उच्चारण करके) “खाली” शब्द को ही “सिद्ध” कर लेता है 🙂 – ऐसे लोगों को कभी भी कुछ रिजल्ट नहीं मिलता),
कइयों को हर वाक्य के “पहले” “खाली” शब्द बोलने की “आदत” होती है-ऐसा बोलने
में चूक होने पर कभी कभी तो वो वाक्य के बीच में भी इसका प्रयोग अचूक कर लेते हैं. 🙂
५. “अपने तो जैसा है, वैसा ही ठीक है” (ऐसा बोलने वाले की उन्नति कैसे होगी क्योंकि वो मान रहे है की जैसा है, वैसा ही ठीक है)
६. “नहीं,….” ऐसा भी कर सकते हैं. (कइयों की आदत पहला शब्द ही “नहीं” बोलने की होती है, ऐसे व्यक्ति वास्तव में किसी की भी नहीं सुनते – ऐसे लोगों से दूर ही रहें). ऐसे व्यक्ति आपसे बात खूब कर लेंगे पर उसका रिजल्ट जीरो आएगा.
७. “पता” नहीं आगे क्या होगा- ऐसे लोग “भविष्य” के प्रति “आश्वस्त” (Sure) नहीं होते. ऐसे लोगों के साथ भी बैठने से बचें.
आगे पढ़ें :करेमि भंते ! (5)