यदि जैन सूत्रों के बारे में नहीं जाना
और धर्म के नाम पर जीवन कला
और जीवन कला के नाम पर मात्र
मैनेजमेंट और लाइफ फंडा
के भाषण ही सुने,
तो समझ लेना तुम
कांच के टुकड़ों को हीरे समझ रहे हो.
जिस दिन नमुत्थुणं सूत्र के बारे में
सही तरह से जान लोगे,
उस दिन आँखों से आंसू आने लगेंगे कि
गणधरों ने हमारे ऊपर कितना उपकार किया है!
क्या कोई बताएगा कि
इसमें हमें ऐसा क्या दिया गया है?
रोज ना ही सही-चातुर्मास में,
चातुर्मास में ना सही-पर्युषण में,
वर्षों से आप ये सुन रहे कि
नमुत्थुणं सूत्र से इंद्र-महाराज भगवान की स्तुति करते हैं.
परन्तु आप वास्तव में सुनते नहीं हो.
क्योंकि “पर्युषण” के दिन भी बड़ी मुश्किल से पसार होते हैं
-सूखी सब्जी खाते खाते!
ये इसलिए कहना पड़ रहा हैं क्योंकि
ये जानने के बाद भी कि “इंद्र” जिस सूत्र से भगवान कि स्तुति करते हैं,
वो सूत्र ज्यों का त्यों श्रावकों को बोलने के लिए दे दिया गया हैं.
गणधरों ने श्रावकों में ऐसी कौनसी योग्यता देखी
जो उन पर इतने मेहरबान हो गए?
क्या आपको लगता है कि ऐसा सूत्र उन्हें आपको दे देना चाहिए था!
प्रश्न :
नमुत्थुणं की इतनी महत्ता जानने के बाद
कितने लोगों में नमुत्थुणं सीखने की चाह पैदा हुई है?