श्री आदिनाथ भगवान का उत्कृष्ट कुल :
१. माता मरुदेवी वनस्पतिजीव में उत्पन्न होकर
सीधे मनुष्य भव में आई और
इस अवसर्पिणी काल में पहली मोक्षगामी बनी.
२. पुत्र भरत – इस अवसर्पिणी काल के प्रथम चक्रवर्ती बने.
३. भगवान ऋषभदेव के सभी पुत्र और पौत्र भी मोक्ष ही गए.
४. भगवान ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी और सुंदरी
को अपने ही भाई महान बलशाली बाहुबली को प्रतिबोध देने के लिए भेजा.
(साध्वियां होते हुए भी उन्होंने अपने “मीठे वचनों” से
“उग्र तपस्वी” बाहुबली को प्रतिबोध दिया).
विशेष:
१. जीव “प्रतिबोध” तभी प्राप्त करता है,
जब वो कही हुई बात पर विचार “स्वयं” करता है.
जब बाहुबली को बहनों ने
“गज से उतरो” ये शब्द कहे,
तो वो पहले तो “चमके”
फिर वो वहां से “उतरे” तो सही,
पर वास्तव में केवल ज्ञान की सवारी में “चढ़े.”
२. बाहुबली का प्रण था :
उम्र में छोटे भाइयों को नमस्कार ना करने का!
अद्भुत जैन धर्म ने उनकी इस इच्छा को पूरा किया.
कैसे?
जैसे ही नमस्कार करने के लिए पाँव उठाया,
केवल ज्ञान प्राप्त हो गया
इसलिए
वास्तव में छोटे भाइयों को नमस्कार करना नहीं पड़ा.
मतलब धर्म का क्या प्रभाव होता है,
वहां बुद्धि नहीं पहुँच सकती.
क्योंकि बुद्धि अक्सर वहां भी तर्क करती है
जहाँ उसकी पहुँच भी नहीं होती.
इसीलिए भगवान के पास
“बुद्धि” देने की प्रार्थना नहीं की जाती,
“सद्बुद्धि” देने की प्रार्थना की जाती है.
फोटो :
अति प्राचीन (लगभग 1000 साल )
और प्रभावशाली
श्री आदिनाथ भगवान
लीमड़ा उपाश्रय के पास में
गोपीपुरा , सूरत।