“ॐ नमो भगवते
श्री माणिभद्राय
ह्रीं श्रीं
कण कण क्लीं
फण
फट फट स्वाहा ||”
~ ~
मणिभद्र वीर का ये बहुत प्राचीन मंत्र है.
ये बीजाक्षर सहित है. इसलिए ज्यादा प्रभावशाली है.
विशेष :
कण कण को
ऐसे बोलें.
क -ण- क -ण
और
इसी प्रकार
फण को फ-ण
अलग अलग कर के बोलें.
( ध्यान रखें :”ण” बोलते समय ण का उच्चारण आधा ना हो )
जो दूसरा मंत्र प्रचलित है :
“ॐ असिआउसा नमः श्री माणिभद्र दिशतु मम सदा सर्व कार्येषु सिद्धिं”
(इससे भी बड़ा मंत्र ज्यादा प्रचलित है,
पर मंत्र जितना छोटा होगा, उतना ज्यादा प्रभावशाली होता है).
“अ-सि-आ-उ-सा” :
अरिहंत, सिद्ध , आचार्य, उपाध्याय और साधू का
शार्ट फॉर्म (अब्ब्रेविएशन) है.
ये ऊपर लिखी बात को सिद्ध करता है कि
मंत्र जितना शार्ट फॉर्म में होगा,
उतना ज्यादा प्रभावशाली होता है….
विशेषतः सामान्य श्रावकों के लिए
जो बड़ी साधना अभी तक नहीं कर पाये हैं.
वर्तमान में श्री मणिभद्र वीर को
तपागच्छ के गच्छाधिपति
श्री इन्द्र दिन्न सूरी जी ने साधा है.
उनका तीर्थ स्थल पावागढ़ ( वड़ोदरा के पास ) है.
इस तीर्थ की अधिष्ठात्री देवी श्री काली है.
श्री काली के दर्शन के लिए पहाड़ पर रोप वे से जा सकते हैं.
ये रमणीय स्थल के साथ साथ
नेशनल हेरिटेज भी है.
इसके पास कम से कम १५ टूरिस्ट स्पॉट्स हैं.
उपरोक्त स्थल के अलावा
श्री माणिभद्र वीर
के प्राचीन (मूल) स्थान 4 हैं :
विशेष:
श्री माणिभद्र वीर भगवान महावीर के निर्वाण से
4 वर्ष पूर्व ही इंद्र बने हैं.
भगवान के निर्वाण महोत्सव में वो हाज़िर थे,
वो एक भवतारी हैं यानि अगले भव में मोक्ष जाने वाले हैं.
ऐसा उन्होंने श्री इन्द्रदिन्न सूरी जी को बताया है.
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फोटो:
श्री माणिभद्र वीर