जैन वो नहीं है, जो ये कहता है कि “धर्म-कर्म” कुछ नहीं है, देखो “पापी” कहे जाने वाले वास्तव में “ऐश” कर रहे हैं, और “धर्म” करने वाले जिंदगी घसीट रहे हैं.

जैन वो नहीं है, जिसे “धर्म” क्या है, उसका पता नहीं है.

जैन वो नहीं है, जो “महावीर के सिद्धांत” ना अपनाकर अपनी बुद्धि से निर्णय करने कि चेष्टा और बहस करता है कि क्या होना चाहिए और क्या नहीं.

 

जैन वो नहीं है, जो “जिन मंदिरों” के दर्शन का निषेध करके खुले आम अन्य मंदिरों में जाते हैं.

जैन वो नहीं है, जो साल में कम से कम एक दिन भी प्रतिक्रमण नहीं करता.

जैन वो नही है, जिसे “श्रावक” के छ: आवश्यक क्या हैं, ये भी पता नहीं है.

जैन वो नहीं है, जो “गरीबों” की सहायता करने को “साधुओं” की सेवा से ऊपर समझता है.

 

जैन वो नहीं है, जो “रात्रि भोजन” “खुले आम” करता है.

जैन वो नहीं है, जो “उपवास” करने को “भूखा मरना” है कह कर खुद non-veg और beer पीने चले जाते हैं.

तो फिर जैन कौन है?

जैन वो है जिसे हर समय अपनी आत्मा का कल्याण सबसे ऊपर नज़र आता है और उसके लिए अपने जीवन की स्थिति के अनुसार “भरसक” प्रयास करता है.

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