लोगस्स पंचम श्रुत केवली
श्री भद्रबाहु स्वामी की कृति है.
लोगस्स में वर्तमान चौबीसी के
२४ तीर्थंकरों की “नाम” से “स्तुति” की गयी है.
आपको कोई
आपके नाम से “प्रेम” से पुकारे
तो कितना अच्छा लगता है!
प्रश्न:
क्या लोगस्स पढ़ते समय आज तक ऐसा लगा है
कि हम इन सब तीर्थंकरों के पास ही बैठें है
और उन्हें “वंदन” कर रहे हैं?
तीर्थंकर प्रभु को “नाम” से पुकारना
यानि एक एक भगवान को “क्रम”
से याद करना!
प्रश्न:
भगवान का स्मरण करने से क्या फायदा है?
प्रतिप्रश्न:
रोज अपने दुखों को याद करने से क्या फायदा है?
(फिर क्यों याद करते हो)?
उत्तर :
हम दुखों को याद थोड़े ही करते हैं!
वो तो अपने आप याद आते रहते हैं.
जैसे बच्चे विदेश में पढ़ने गए हों,
तो उनकी याद आती ही रहती है.
तो फिर हमारा सम्बन्ध भगवान से भी ऐसा ही होना चाहिए
कि जब तक ना मिले, तब तक याद आती रहे!
भगवान से कहो –
मेरी भाषा कोई शास्त्र की भाषा नहीं है तो क्या हुआ!
आप तो सर्वज्ञ हो!
विशेष:
कुछ “सम्प्रदाय” (दादा भगवान वाले),
जो तीर्थंकर मोक्ष जा चुके हैं,
उन्हें “तीर्थंकर” नहीं मानते हैं ,”सिद्ध” मानते हैं.
फिर ये २४ तीर्थंकर “वर्तमान चौबीसी” के नाम से क्यों जाने जाते हैं?
स्वयं “दादा भगवान” वालों को भी “दादा भगवान” का अस्तित्व
एक “स्वर्गवासी” पुरुष की तरह मानना पड़ेगा.
ये बात उन्हें स्वीकार नहीं होगी.
(मान्यताएं “सही भी हो सकती हैं, गलत भी)
हमारे दादा भले ही स्वर्ग चले गए हों,
तो भी हमें कोई पूछे कि आपके दादाजी का क्या “नाम” “है?”
तो हम उनका “नाम” भी बताते हैं, फोटो हो तो वो भी बताते हैं.
इसी तरह कोई पूछे कि वर्तमान में तीर्थंकर कौन हैं –
तो हम उनका “नाम” भी बताते हैं और “प्रतिमाजी (या फोटो) भी बताते हैं.
ये सब हम बचपन से करते आये हैं.
“नाम स्मरण” की महिमा :
“तीर्थंकर नाम स्मरण” के कारण ही
लोगस्स को “नाम-स्तव” कहा गया है.
जैन साधना पद्धति में “लोगस्स” से काउसग्ग किया जाता है
और बाद में “प्रकट लोगस्स” भी तुरंत ही “बोला” जाता है.
“समाहि वर मुत्तमम् दिन्तु”
मुझे “समाधि” का उत्तम “वरदान” प्राप्त हो,
यही “प्रार्थना” की जाती है.
मानो पहले
1. तीर्थंकरों के “नाम” का “मन” में चिंतन किया
2. बाद में उसका “उच्चारण” किया.
3. और इस प्रकार “काया” के माध्यम से “ध्यान” भी किया.
इसलिए ये सूत्र
१. प्रार्थना,
२. प्रभु-स्मरण,
३. भक्ति,
४. वंदन,
५. चिंतन-मनन और
६. ध्यान-योग का
उत्कृष्ट साधन है.
प्राप्ति :-
जो व्यक्ति रोज १२ लोगस्स का “ध्यान” करता है
उसे मंत्र, विद्या और सिद्धि शीघ्र प्राप्त होती है.
फोटो :
हर सम्प्रदाय में मान्य और “आकाश गमन” से तीर्थ यात्रा करने वाले
श्री कलापूर्ण सूरी जी ने
“लोगस्स सूत्र” का नित्य स्मरण करने को कहा है.
वो स्वयं रोज १००० लोगस्स का जाप करते थे.
उनके वचन “सिद्ध” हैं.
(उनका काल धर्म २००२ के साल में ही हुआ है
और भद्रेश्वर तीर्थ (कच्छ)
उनके आशीर्वाद से ही दोबारा बना है).