कालांतर में हर जैन साधू को वचन सिद्धि हो जाती है क्योंकि वो :
१. हर समय “सत्य” बोलते हैं.
२. “अहिंसा” का पालन करते हैं.
३. “ब्रह्मचर्य” का पालन करते हैं.
४. “परिग्रह” (वस्तुओं का संचय) नहीं रखते.
५. “चोरी” नहीं करते.
वास्तव में ये पांच महाव्रत एक दूसरे के पूरक (सप्लीमेंट्री) हैं.
कैसे?
१. “सत्य” बोलने वाला “सत्य” का ही पालन करता है. “सत्य” क्या है, उसका उसे “ज्ञान” होता है. यहाँ “सत्य” का मतलब “Ultimate Truth” है.
ऐसा व्यक्ति “अहिंसक” ही होगा.
जैसे कोई प्रश्न करे : क्या हिंसा करना ठीक है? तो “सत्य” बोलने वाला कहेगा – “कभी नहीं.” सिद्ध हुआ की “सत्य” बोलने वाला “अहिंसक” ही होता है.
२. “ऊपर लिखी बात से सिद्ध हो ही चुका है कि सत्य बोलने वाला अहिंसक होता है. इसका अर्थ ये हुआ कि “अहिंसक” व्यक्ति “सत्य” का ही पालन करता है.
३. यदि कोई प्रश्न करे कि क्या “चरित्रहीनता” ठीक है? तो तुरंत उत्तर आता है : कभी नहीं. मतलब ब्रह्मचर्य ही सबसे बड़ा सत्य है.
क्या ब्रह्मचारी कभी “हिंसा” कर सकता है? वो एक बार “भोग” करके ९,००,००० जीवों की हत्या की स्वप्न में भी नहीं सोच सकता है.
४. “क्या वस्तुओं का संग्रह करना चाहिए? उत्तर आएगा : नहीं! इसका मतलब है “अपरिग्रह” सत्य है. ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला “वस्तुओं” का संग्रह क्यों करेगा? उसने तो जिस कारण से संग्रह करना पड़ता है, वो “मूल” ही अपने जीवन से हटा दिया है. जब वो वस्तुओं का संग्रह ही नहीं करेगा, तो सूक्ष्म हिंसा भी कैसे होगी? मतलब “अपरिग्रही” अहिंसक भी होता है.
५. क्या चोरी करना सत्य है? उत्तर आप स्वयं देवें.
क्या एक “चोर” अहिंसक” होता है? उत्तर आप स्वयं देवें.
क्या एक “चोर” ब्रह्मचर्य” का पालन करता है? उत्तर आप स्वयं देवें.
क्या एक “चोर” अपरिग्रही होता है? उत्तर आप स्वयं देवें.
मतलब “घूम-फिर” कर सारी बातें इन पांच महाव्रतों पर ही “घूमती” है.
जो भी साधू इन बातों का पालन करने में “संयम” रखते हैं
उन्हें वचन सिद्धि हो जाती है.
(पर वर्तमान में बहुत कम साधुओं को इस बात पर सम्पूर्ण विश्वास है
क्योंकि कुछ कार्यों के लिए कुछ हद तक “असत्य” भी बोलते हैं और “परिग्रह” भी रखते हैं).
यदि “शुद्ध संयमी” साधुओं का “आशीर्वाद” मिल गया तो समझ लो
सारे “दुष्ट ग्रह” कुछ नहीं बिगाड़ सकते और
सब मंगल ही मंगल होता है.
कारण:
“जिसकी” वाणी ही “सत्य” हो तो फिर “ब्रह्मा” भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता.
“सत्यमेव जयते” ऐसे ही थोड़ी कहा गया है.