पहले नवकार महामंत्र का विराट स्वरुप- 1-3 पढ़ें.
“Treatment” करते समय यदि थोड़ी भी “असावधानी” हो तो “रिजल्ट” कुछ से कुछ आ जाता है.
ये “असावधानी” हॉस्पिटलवालों से हुई है, वो कभी मानने को तैयार नहीं होंगे.
अब बात आती है : मंत्र विज्ञान की!
“भाई साहब” को गुरु ने जाप-मंत्र दिया कुल 5 अक्षर का :
“ॐ अर्हं नमः”
1 विधि भी बताई,
2 समय भी बताया,
3 कुछ दान देना भी बताया,
4 तप भी बताया,
5 जप संख्या भी बतायी
भाई साहब ने सब कुछ किया पर “अर्हं नमः” में अरिहंत को नमस्कार करने का जो भाव आना चाहिए, वो “ध्यान” नहीं रखा. सिर्फ रटा क्योंकि “संख्या” पूरी करनी थी इसलिए दे ध-ना-ध-न…
अब रिजल्ट जो आने चाहिए था, वो आएगा क्या?
डॉक्टर ने दिन में 3 बार दवा लेने को कही और भाई साहब ने 1-1 घंटे के अंतर से तीन बार ले ली हो,
तो क्या रिजल्ट आएगा?
बिलकुल “रिजल्ट” ना आये, ये नहीं हो सकता
पर “कुछ उल्टा रिजल्ट” तो आएगा ही! 🙂
बस ऐसा ही मंत्र विज्ञान के बारे में समझें.
है ना मंत्र विज्ञान पूरा साइंटिफिक!
जिस तरह एक हॉस्पिटल में पूरा Environment चाहिए, सफाई से लेकर, स्टाफ और इक्विपमेंट्स तक….सिर्फ डॉक्टर से काम नहीं चलता.
ठीक उसी प्रकार “मंत्र-विज्ञान” में पूरी व्यवस्था चाहिए. सिद्ध-पुरुष का सान्निध्य चाहिए. “धैर्य” चाहिए….रिजल्ट प्राप्त करने का!
BBA/MBA की “डिग्री” पूरे जीवन में सिर्फ एक दिन मिलती है पर उसके लिए पढ़ाई में पूरे 15 साल लगाने होते हैं. इसमें भी लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी जो प्राप्त होना चाहिए वो होता है क्या ?
“मंत्र” से लोग ये अपेक्षा रखते हैं कि बस कल काम हो जाए, अच्छा हो कि आज ही हो जाए और अभी ही !
सारी बुद्धि का इस्तेमाल करने से भी जो काम ना हो सके (जिस “बुद्धि” का “खुद” को बड़ा गर्व है – कोई भी व्यक्ति ये सरलता से स्वीकार नहीं करेगा कि दूसरे की बुद्धि उससे ज्यादा है), वो “मंत्र” से एक क्षण में प्राप्त करना चाहता है. जबकि चमत्कार तो वो है कि हम सारे प्रयत्न करने के बाद सब आशाएं छोड़ दें और “अंतिम क्षण” में काम हो जाए.
मंत्र को समझने के लिए शुरुआत (in the beginning) में ऐसा समझें कि
“मंत्र” एक “विचार” है,
जो “मन” में आता है,
बार बार “मनन” करने से,
उस “विचार” में दृढ़ता आती है
और
उस “विचार” के अनुसार ही काम करने की प्रेरणा मिलती है
और कार्य सफल हो कर रहता है.
कार्य में सफल होने के लिए दृढ़ विश्वास की बात हर कोई करता ही है.
पेट्रोल पंप पर पेट्रोल बेचनेवाले ने खुद की पेट्रोल कंपनी बनाने की सोची,
यदि उस समय किसी को अपना विचार बताया होता,
तो “दुनिया” उसे पागल कहती
परन्तु ये “विचार” उसने “खुद” तक रखा
और
एक दिन “दुनिया” उसके पीछे पागल हो गयी (धीरूभाई अम्बानी).
पाठक परेशान हो रहे होंगे कि नवकार का विराट स्वरुप पढ़ने को कब मिलेगा ?
आगे पढ़ें : नवकार महामंत्र का विराट स्वरुप-5