संवत्सरी !
५ परमेष्ठि हैं,
५ कल्याणक हैं,
५ इन्द्रियां हैं,
५ तत्त्व हैं,
५ ज्ञान हैं,
५ उंगलियाँ हैं….
सभी जगह पांच की महत्ता हैं.
वर्षों पहले संवत्सरी भी
ऋषिपंचमी (भाद्रपद सुदी ५) को ही होती थी.
क्योंकि चातुर्मास के ५०वे दिन ही
संवत्सरी महापर्व मनाने का विधान हैं.
(५० में भी ५ की संख्या आ ही गयी हैं)
संवत्सरी कारणवश ४९वे दिन की जा सकती हैं,
परन्तु ५१वे दिन नहीं होती.
इसी कारण श्री कालकाचार्य ने राजा के शोकग्रसित होने से
संवत्सरी ४९वे दिन की
और
अगले साल ही वो काल धर्म को प्राप्त हुए.
उनके शिष्यों ने ४९वे दिन को ही
आगे के लिए मान्यता प्रदान कर दी और
आज तक तो भूल चली आ रही हैं.
पर्व तिथि हैं : १,५,८,१४,१५
यहाँ पर भी पर्व तिथि ५ ही हैं.
जैनों में चौथ पर कोई भी पर्व तिथि आती हैं क्या?
ध्यान रहे संवत्सरी ८ दिन की इसलिए हैं कि
८ कर्मों को खपाया जाए.
और
पंचमी को इसलिए हैं कि
पांचवें ज्ञान-केवल ज्ञान प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ा जाए.
फोटो :
श्री शांतिनाथ भगवान (नीलवर्ण)
प्रतिष्ठा: संवत १९११
छोटी सादड़ी (राज)
ये प्रतिमाजी को जब ले जाने लगे तो
स्वतः ही शिव मंदिर में आकर स्थिर हो गयी.