पहचानो जैन धर्म का असली रूप

पहचानो जैन धर्म का असली रूप :

जब तक “आत्मा” उत्थान ना करे
या उसके लिए प्रयास न करे ,
तब तक वो “धर्म” नहीं है.

जिन्होंने जिन धर्म को समझा नहीं है,
मात्र वो ही दीक्षा और जिन मंदिरों में
किये जाने वाले खर्च की निंदा करते है.

मानो की आपने एक मरीज, जो कि लगभग मरने वाला था,
उसको पैसा देकर इलाज करवाया इससे वो बचाया जा सका.

 

आपने अच्छा काम किया.

अब ठीक होकर वही मरीज वापस नॉन-वेज खाने लगा.

“उसके” इस “पुण्य” (?) का भाग तो
अब आपको प्राप्त होने वाला ही है.

जब तक लोगों को टेढ़ी बात ना की जाए,
तब तक सही बात समझ में आती नहीं है.

 

इसीलिए मात्र और मात्र जो पात्र हो,

यानि साधू, साध्वी, श्रावक, श्राविका, मंदिर, उपाश्रय एवं श्रुत भक्ति
में पैसा लगाने से जीवात्मा की स्थिति ऊपर उठती है.

और यही जैन धर्म अपनाने का उद्देश्य है.

फोटो:
श्री सिद्ध चक्र यन्त्र

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