नवकार के “रंग”
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“जीवन” के सभी “रंग” देखने की “इच्छा” करने वाले
“नवकार” के “रंग” देखने की “इच्छा” नहीं करते.
(नवकार का “कलर्ड” फोटो जरूर देखा है)

क्योंकि “नवकार” की बात आने पर
ज्यादातर तो “colourblind” हो जाते हैं.

नवकार का “ध्यान” लगाने की बात आते ही
“मन” भटक जाता है,
– ये “शिकायत” करते हैं.

अब आगे पढ़ें:
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“अरिहंत” का रंग है “सफ़ेद”
और
“साधू” का रंग है “काला.”

सबसे पहले नमस्कार किया गया : अरिहंत को !
(आज तो “अरिहंत” पीछे है और “गुरु” आगे हैं).
और
“साधू” का रंग है “काला !”
(वस्त्र जरूर “सफ़ेद” हैं).

ये काफी “विचारणीय” है.
(चिंतन खुद को ही करना होगा,
बहस को यहाँ “जन्म” नहीं देना चाहता).

बाकी के रंग हैं : लाल, पीला और हरा !
(“नवकार” में ये किसके “रंग” हैं, जरा पता करो).

रंगों के बारे में जब भी बात होती है
तो यही कहा जाता है :
लाल, पीला और हरा !

सफ़ेद और काले की बात नहीं होती.

कारण?
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“कालेपन” में तो हमसे ज्यादा “अनुभवी” दूसरा नहीं है
और “सफ़ेद” होने का हम सोचते नहीं हैं.
(“सफ़ेद” हो कर करना क्या है)!

इसीलिए “पहला” नमस्कार ही
“अरिहंत” तक नहीं “पहुँच” पाता.
क्योंकि हम तो “बीच” का “आनंद” लेते हैं.

हमें मात्र “सुनकर” “व्याख्यान” का “मजा” लेना है.
करने की “वैसी” तैयारी “मन” में ही नहीं है !

तो अब “रिजल्ट” कैसे आये?

“नवकार” के रंग तो “बरस” रहे हैं
पर हम खुद ही “इतने” काले हैं कि
“दूसरा” रंग हम पर “चढ़ता” ही नहीं है.

तब क्या करें?
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जाप करें :

ह्रीं अर्हम~ नम: ||

ये मंत्र “ॐ अर्हम~ नम:” से अलग है.
ॐ का उच्चारण तो “आत्म-साक्षात्कार” करवा देता है.

परंतु जिसके “पाप” अभी हैं
उन्हें नष्ट करने के लिए “ह्रीम~” जरूरी है.

“ह्रीम~कार” में “चौबीस तीर्थंकरों” की विद्यमानता है.

प्रश्न:
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हमारी “विद्यमानता” किस “अक्षर” में है,
ये “चिंतन” का विषय है.
“उत्कृष्ट ध्यान” का “विषय” है.

“जिसे” इस बात का ज्ञान है,
उसे और ज्ञान लेने की जरूरत नहीं है.

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