केवल ज्ञान
भगवान महावीर ने केवल ज्ञान को समुद्र और 14 पूर्व को समुद्र की एक बूंद बताया है. सिर्फ शास्त्रों में लगे रहने वालों के लिए एक कड़ा संदेश है, उन्हें पूरा हिला देने जैसी बात है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि 14 पूर्वधर थोड़ा भी प्रमाद करे तो सीधा निगोद में! यानि फिर स्वतंत्र शरीर भी न मिलेगा!
ये दुर्गति अरिहंत का ध्यान, भक्ति, पूजा, स्तोत्र आदि करने वाले की कभी नहीं होती.
ऐसा क्यों?
क्योंकि वो एक केवली से जुड़ रहा है, जो मोक्ष भी जा चुके फिर भी उनके वचन जीवित हैं, उपलब्ध हैं.
तब वचन यानि शास्त्रों पर ही श्रद्धा क्यों, जिसने शास्त्र दिए हैं क्या उनके चरण धोने लायक नहीं हैं?
प्रभु के अभिषेक की महत्ता भी जानने जैसी है,
पर किसी ने कसम ही खा रखी हो कि किसी भी स्थिति में वो उनके चरण अभिषेक करने ही नहीं है
तो उसका कोई उपाय कैसे हो? ?
एक धनवान के पास दिन रात बैठना होता हो तो पैसा कमाने की युक्ति भी मिलती ही है, यदि थोड़ी भी बुद्धि हो.
इसी प्रकार जिसे भगवान के प्रति प्रीति हो,
तो भगवान के पास बैठने का अवसर मिलेगा ही मिलेगा, उसमें कोई शंका का अब स्थान नहीं रहता.
? महावीर मेरा पंथ ?
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