प्रश्न:
“सर्व धर्म एक समान” की बड़ी बड़ी बात करने वाले
“सर्व पंथ एक समान” ना बताकर
अपने को दूसरे समुदाय से बड़ा बताने की
कोशिश क्यों करते हैं?
उत्तर:
उनमें अभी भगवान की बातें पूरी उतरी नहीं है.
सब धर्म एक समान नहीं हैं.
यदि कोई ऐसा माने तो :
प्रधानम् सर्व धर्माणाम्,
जैनम् जयति शासनम्
बोला नहीं जा सकता.
एक ही कुल के सभी व्यक्ति एक से नहीं होते.
और तो और एक ही व्यक्ति का स्वभाव (व्यवहार)
हर समय एक सा नहीं होता.
सवेरे मूड कुछ और होता है, २ घंटे बाद कुछ और.
जो जैन-सम्प्रदाय ये कहे कि
“सभी धर्म और सभी देव”
समान हैं
और
मानव सेवा ही सर्वोपरि है
उन्हें
“प्रधानम् सर्व धर्माणाम्
जैनम् जयति शासनं”
बोलने का अधिकार नहीं है.
नोट:
सेवा मात्र तीर्थंकरों और गुरुओं की ही की जाती है.
मानव सेवा को जैन-धर्म में अनुकम्पा (दया) कहा गया है,
उनकी सेवा नहीं.
(किसी भिखारी को भोजन देकर आप ये नहीं कह सकते कि
आज मैंने उसकी सेवा की है).
मानव सेवा से पुण्य का बंध होता है,
परन्तु उससे “सम्यक्त्त्व” प्राप्त नहीं होता.
फोटो:
अत्यंत चित्ताकर्षक
श्री शांतिनाथ जिनालय,
केबिन चौक,महुआ, जि. भावनगर, गुजरात.