जैनों के लिए एकदम सामान्य प्रश्न:अरिहंत किसे कहते है?
कर्म रुपी शत्रु का नाश जिसने किया है!जैन धर्म के सर्वप्रथम मंत्र के प्रथम पद
“नमो अरिहंताणं” में शत्रु की बात करना!क्या ये आश्चर्यजनक नहीं है?
अनादि काल से कर्म रूपी शत्रु के कारण ही
आत्मा जन्म मरण के जाल में फंसी हुई है.
जब तक व्यक्ति काल कोठरी में गहरी नींद सोया हुआ हो,
तब तक उसे पता नहीं पड़ता कि वो कहाँ पर है
क्योकि गहरी नींद का आनंद ही कुछ और है.
पर जैसे ही वो जागता है,
वो तुरंत उस जाल/पिंजरा/कोठरी से बाहर निकलने में
अपना पूरा जोर लगा देता है.
अरिहंत परमात्मा स्वयं ही इस बात को जानते है
और पूरे पुरुषार्थ से कर्म निर्जरा करके केवलज्ञान प्राप्त करते है.
फोटो: श्री आदिनाथ जिनालय,कतारगाम, सूरत
(इस मंदिर की सभी प्रतिमाएं बड़ी मनमोहक और जीवंत हैं).