वर्तमान में भगवान महावीर (mahaveer) की अंतिम देशना (उत्तराध्ययन सूत्र) सुधर्मा स्वामी ने जो जम्बू स्वामी को कहा, वो चली आ रही है.
भगवान की 72 वर्ष की उम्र और 72 घंटे की देशना !
अतीत, वर्तमान और आने वाली चौबीसी में कुल 72 तीर्थंकर.
बहत्तर यानि जो “बहे” “तर” होकर!
भगवान महावीर (mahaveer) ने जो फरमाया, वो “कथा” के माध्यम से सर्व जन को कहा (“पब्लिक” तो हर समय एक सी ही रही है- उसे “कथा” में ही मजा आता है और वही देर तक सुना जा सकता है).
यद्यपि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में श्रावक को “उत्तराध्ययन सूत्र” का “मूल” पढ़ने की अनुमति नहीं है फिर भी योगानुयोग मुझे मेरे गुरु से ये “आज्ञा” मिली है.
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पहले अध्याय में बात है “विनय” की.
किस्सा है : “कुलवालक मुनि” का.
किसी आचार्य का एक “क्षुल्लक” शिष्य अविनयी था. गुरु के शिक्षा देने पर उसे रोष आता था. हद तो तब हुई जब सिद्धाचल (पालिताना) पर वो आचार्य आदिनाथ भगवान को वंदन करने गए. नीचे उतरते समय शिष्य ने गुरु का “वध” करने के लिए एक “शिला” लुढ़का दी. गुरु ने पाँव पसारे और शिला बीच में से निकल गयी. छद्मस्थ गुरु को भी क्रोध आ गया और शाप दिया: अरे पापी! तेरा चारित्र “स्त्री” से नाश होगा !
गुरु के वचन झूठे हों, इसके लिए वन में तप करने लगा. वन में एक नदी में वर्षा की बाढ़ आई. तप के प्रभाव से नदी की अधिष्ठायिका देवी ने विचार किया कि तपस्वी मुनि पानी में ना बहें, इसलिए नदी की दिशा बदल दी. इससे प्रभावित होकर लोगों ने उसे “कूलवालक” नाम दिया.
इधर एक बार श्रेणिक (बिम्बिसार) राजा का पुत्र “कोणिक” चंपा नगरी में राज्य करता था. एक बाद “रानी पद्मावती” ने उससे दिव्य कुण्डल, अठारह सेर (लगभग ८-९ किलो) सोने का हार और सेचनक हाथी माँगा. ये कोणिक के भाई “हल्ल और विहल्ल” के पास थी. डर से दोनों भाई ये सब लेकर अपने नाना “चेटक” के पास पहुंचे. कोणिक ने नाना पर चढ़ाई की.
(अपार संपत्ति होते हुवे भी “क्षुद्र” वस्तुओं का “मोह” व्यक्ति को कहाँ ले जाकर पटकता है – रानी के पास संपत्ति की कमी नहीं थी, हल्ल-विहल्ल के पास भी कमी नहीं थी). 10 बाणों से चेटक ने अपने 10 दौहित्रों को मार गिराया क्योंकि उसका बाण निष्फल नहीं जाता था.
कोणिक ने देव की आराधना करने के लिए “अठ्ठम” तप (तेला) किया.
तप भी किया तो किस कारण!
पूर्व जन्म के उसके मित्र शक्रेन्द्र और चमरेन्द्र प्रकट हुवे. कोणिक ने मांग की: शत्रु राजा “नाना” “चेटक” की मृत्यु!”
(जरा मन में विचार करो कैसे विषम काल की शुरुआत उस समय ही हो चुकी थी).
देवों ने कहा : ये हमारे साधर्मिक भाई हैं. हम उसे नहीं मारेंगे. परन्तु, तुम्हारी “रक्षा” करेंगे.
ये कहकर “चमरेन्द्र” ने कोणिक को “महाशिलाकण्टक” और “रथमूशल” ये दो तरीके युद्ध के बताये.
शक्रेन्द्र ने कोणिक के आगे “वज्रकवच” धारण किया और पीछे चमरेन्द्र ने युद्ध की दोनों युक्तियाँ प्रयोग कीं.
इससे “चेटक” को भागना पड़ा और वो अपनी “विशाला” नगरी में छुप गया.
कोणिक ने खूब मेहनत की परन्तु नगर में प्रवेश नहीं कर सका.
कारण?
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