भगवान् महावीर के श्रावकों द्वारा सहन किये गए उपसर्ग

भगवान् महावीर के श्रावकों द्वारा सहन किये गए उपसर्ग

कामदेव श्रावक

इनके पास अठारह करोड़ सोना मोहर और साठ हज़ार गायें थीं.
इनकी आराधना की प्रशंसा देवलोक में भी हुई.
एक देव परीक्षा करने के लिए नंगी तलवार लेकर आया.
फिर विशाल हाथी और विषैले सर्प का रूप धारण करके “मारणान्तिक” कष्ट देने लगा.
फिर भी कामदेव अपने “ध्यान” से विचलित नहीं हुवे.
देव ने प्रकट होकर क्षमायाचना की.
जीवन के अंत में एक महीने का संथारा करके सौधर्म कल्प में “अरुणाभ” विमान में उत्पन्न हुवे.
वहां चार पल्योपम की आयु भोगकर महाविदेह क्षेत में जन्म लेकर मोक्ष पाएंगे.

इसी प्रकार चुलनीपिता,चुल्लशतक, सकडाल पुत्र, इत्यादि ने देव द्वारा किये गए उपसर्ग सहन किये.
कामदेव और आनंद श्रावक तो जरा भी विचलित नहीं हुवे.
चुलनीपिता और चुल्लशतक विचलित हुवे पर वे प्रायश्चित्त करके शुद्ध बने.
अंत में सभी आयुष्य पूरा करके सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुवे हैं
और वहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष पाएंगे.

सभी के जीवन में कुछ समानताएं हैं.
सभी अव्वल कोटि के धनाढ्य थे, बीस वर्ष तक धर्माराधना की,
श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं को धारण किया और अपना जीवन संवारा.
उनके जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है –
धनाढ्य होते हुवे भी “मन” को “धर्म” में “स्थिर रखा.

और हम?
“धर्म” के नाम पर “लड़” पड़ते हैं !
काम “धेले” का नहीं करते हुवे भी
“धनाढ्य व्यक्ति” ट्रस्टी का पद छोड़ना नहीं चाहते.

हम भी श्रावक हैं
परन्तु देवों को हमारे ऊपर “उपसर्ग” करने की कोई आवश्यकता नहीं है
क्योंकि हम खुद अपने आप में “उपसर्ग” पैदा करने वाले “जीव” हैं.

error: Content is protected !!