भंवरलालजी दोशी
ने ये साबित कर दिया है कि
एक अति धनी करोड़ों खर्च कर देता है
एक भिक्षुक बनने के लिए,
और जो
“ऊपर से दिखने” में शिक्षित हैं
वो वास्तव में बिना दीक्षा लिए
एस्टैब्लिशड “भिखारी” हैं
क्योंकि उनकी सोच “धर्म” तक
पहुँच ही नहीं पायी है.
(भिखारी को दान देने वाला पुण्य कमाता है
ये बात भिखारी थोड़े ही मन से स्वीकार करता है)?
जैन धर्म की गहराई जाने बिना उन्होंने उनके खर्च की आलोचना की
और मात्र अनुमोदना करने से मुफ्त में पुण्य का बंध हो सकता था,
वहां पाप बाँधा.
देखें : http://www.abplive.in/india/2015/06/01/article605830.ece/Meet-the-top-businessman-who-spent-Rs-150-crores-to-become-a-saint