मनुष्य जीवन की सुंदरता ये है कि उसका मन जो श्रेष्ठतम प्राप्त कर सकता है, आनंद ले सकता है, वो अन्य किसी योनि में नहीं ले सकता.
साधना के विषय में तो वो देव लोक के सुखों को भी पीछे छोड़ देता है.
साधना के बल से आकर्षित होकर देवों को ही मनुष्य के पास आना पड़ता है, मनुष्य उनके निवास पर नहीं जाता, न साधारणतया जा सकता है.
जीवन के अंतिम क्षणों में भी साधक प्रभु भक्ति में लीन रहकर अपना उद्धार कर सकता है, जो अन्य किसी योनि में सम्भव नहीं है.
पर ऐसे उत्कृष्ट संस्कार जीते जी लाना, ये ही बड़ा प्रश्न है.
आत्मा की वर्तमान स्थिति कैसी है, इस पर विचार न करके सिर्फ जिंदा रहने पर विचार अधिक किया जाता है भले जीवित रहते कुछ भी प्राप्त न कर रहा हो.
एक तरफ है श्रेष्ठ जीवन जीना, दूसरी तरफ सिर्फ जीवित रहना!
वर्तमान महामारी के समय प्रश्न खड़ा है
-जीवित रहने का या अपने आत्म कल्याण का?
इस प्रश्न का उत्तर देते ही स्वयं की स्थिति कैसे है,
वो भी पता पड़ेगा स्वयं को ही!
🌹 महावीर मेरा पंथ 🌹
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