chandra prabhu swami

धर्म को सोने से भी ज्यादा मूल्यवान क्यों माने ?

धर्म एक सोना

सोना खरीदने की जिसकी हैसियत है
वो बार बार सोना खरीदते हैं.

सोना खरीदने की सभी की हैसियत न होने के कारण
जिसके पास जो है, उसे संभाल कर रखते हैं.

जिसके पास सोना बहुत थोड़ा है, नहीं के बराबर है,
और खरीद नहीं सकते तो
वो सोना खरीदने की इच्छा तो रखते ही हैं.

कारण?

सोना मूल्यवान है,
इसलिए उस पर “विश्वास” भी है.

(नोटबंदी के समय सोने का मूल्य बढ़ा,
पुराने रुपये का टूटा).

धर्म के बारे में भी यही जान लेना:

१. यदि कुछ धर्म सूत्र सीखे हैं तो और सीखने की इच्छा करना.

२. यदि नया सीख नहीं सकते तो जितना सीखा है उतना अवश्य संभाल कर रखना
(नहीं तो वो भी चला जाएगा).

३. यदि धर्म के बारे में कुछ भी नहीं आता हो,
तो उसे जानने की चेष्टा करना
ये भी ना हो सके तो उस पर “श्रद्धा” रखना.

ये भी ना कर सके
तो मर्जी आपकी.

“ऊपर” (या नीचे?) जाकर सब अपने आप “संभाल” लेना
(फिर धर्म साथ रहेगा नहीं).

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