“सिद्धाणं बुद्धाणं ” सूत्र से :-
“उज्जिन्तसेलसिहरे दिक्खा नाणं निसीहिया जस्स
तँ धम्म चक्क वट्टिम अरिट्ठ नेमिं नमंसामि”
“श्री अरिष्टनेमि धर्मचक्रवर्ती
जिनका दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष
गिरनार पर्वत के शिखर पर हुआ है,
उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ.”
वर्तमान मेँ एक भी केवलज्ञानी भरतक्षेत्र मेँ नहीं है,
फिर भी ऐसे सूत्र हजारों लाखों वर्षों से नहीं,
अनादि काल से जैनों को प्राप्त है.
जिन समुदायों की “उपस्थिति” मात्र २००-५०० वर्ष पुरानी है,
और उनकी पाट परंपरा मेँ एक भी केवली नहीं हुआ हो
उन्हें सच जानने के लिए मूल सूत्रों और प्रभावक आचार्यों द्वारा
रचित उन पर टीका, भाष्य और चूर्णी का सही अभ्यास करना चाहिए.
श्री गिरनार तीर्थ श्री शत्रुंजय तीर्थ का
पांचवां पर्वत है जो अभी उससे अलग है.
आने वाली चौबीसी के सारे तीर्थंकर
गिरनार पर्वत पर ही मोक्ष जाने वाले हैं.
ऐसे तीर्थ के दर्शन हर
“समकितधारी”
अवश्य करना चाहेगा.
फोटो:
गिरनार तीर्थ की दुर्गम पहाड़ी पर
भक्त जन उत्साह से चढ़ते-उतरते हुए