जैनों की तपस्या कैसी हो?

बिना विवेक के तपस्या करने वालों के लिए ये सूत्र आँखें खोलने जैसा है.

अपने शरीर की शक्ति से ऊपर तपस्या करना, अविवेक है.

तप उतना ही करें, जब तक मन में प्रसन्नता रहे.

ये “चिंतन” ना आये, कि “अट्ठाई” करनी है और पूरी होने में अब दो दिन बाकी हैं.
रात को तो नींद नहीं आती, पाँवों में जलन होती है.

यदि ऐसा होता हो, तो “उपवास” वहीँ पर “पूरा” कर लें.
“लोग” क्या कहेंगे, उसकी चिंता ना करें.
“उपवास” आपको करना है, लोगों को नहीं.

चिंतन करना है तो :

“आत्मा का”

यानि –

“आत्म-निरीक्षण” का
“आत्म-परीक्षा” का
“आत्म-शुद्धि” का
“आत्म-साधना” का
“आत्म-उद्धार” का

समस्त जीवों में “आत्मा” देखे
सिर्फ उसका ऊपर का “व्यवहार” ना देखे.

विशेष:
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बच्चों में “उपवास” के प्रति “भाव” लाना अच्छी बात है
परंतु उससे भी “अच्छी” बात है कि
वो “सूत्र” पढ़ें, सूत्र अर्थ सीखें और आगे जाकर सूत्र रहस्य” जानें

तभी “जिन-धर्म” की “सच्ची प्रभावना” होगी.

वरना तो “मास-क्षमण” की तपस्या के बाद भी
भाइयों और बहिनों को “शौक से आलू-प्याज-लहसुन” और”रात्रि भोजन” करते देखा है !

“आत्मा-का-उद्धार” गया “भव-समुद्र” के “पानी” में !

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