जैन मंत्र विज्ञान:
जैन मंत्र विज्ञान को ना जानने के कारण ही आज जैनी
इधर उधर फालतू भागते फिरते है.
जो मंत्र विज्ञान की पुस्तके छपाते है
वो इतनी अशुद्धियाँ करते है की मंत्र काम नहीं कर पाता.
फिर लोग दोष जैन मंत्रो को देते है
की ये बहुत मुश्किल से सिद्ध होता है.
वास्तविकता ये है की मंत्र विज्ञान को
अच्छे अच्छे गिने जाने वाले संघनायक भी नहीं जानते
और
इसीलिए उन्हें कई बार
अन्यधर्मी मांत्रिक और तांत्रिक को बुलाना पड़ता है.
पाप के उदय में आने के कारण ही व्यक्ति दुःख भोगता है.
“ह्रीं”
बीजाक्षर पाप नाशक है.
“ह्रीं” बीजाक्षर अपने आप में पूर्ण मंत्र है.
जैन मंत्र विज्ञान में
“ह्रीं” कार में
सारे तीर्थंकरों को
उनके “रंग” के अनुसार
स्थान दिया गया हैं.
लगभग सभी जैन मन्त्रों में इसीलिए “ह्रीं” नज़र आएगा.
मंत्र रहस्य:
“ह्रीं” में तीर्थंकरों का स्थान है
और तीर्थकरों का पुण्य बड़ा प्रबल होता है.
उनके प्रबल पुण्योदय के कारण
“श्रावकों” की ना सिर्फ “सामान्य इच्छाएं” पूरी होती है
बल्कि “ह्रीं” मंत्राक्षर के कारण उनके “सम्यक्तत्व” भी
ना सिर्फ सुरक्षित रहता है, बल्कि मजबूत भी होता है.