जैन धर्म में पांच परम इष्ट हैं – अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधू. आत्म रक्षा स्तोत्र में किसी व्यक्ति विशेष का आलंबन न होकर, अनंत सिद्ध आत्माओं और महापुरुषों का आलंबन लिया गया है इसलिए ये स्तोत्र अति प्रभावशाली है. पूर्व आचार्यों ने अपनी सात्विक साधना के बल पर ये कहा है कि ये अकेला आत्म रक्षा स्तोत्र हर प्रकार के रोग, भय और उपद्रव- इन सभी का नाश करता है. उनकी वाणी सत्य है, अनुभूत सिद्ध है, बस हमें उस पर विश्वास करने की जरूरत है.