“नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग” – उवसग्गहरं महा प्रभाविक स्तोत्र का अठारह अक्षर का ये मूल मंत्र
स्वयं धरणेन्द्र ने श्री मानतुंग सुरीजी को
उनकी “रुग्णावस्था” में दिया है
जब वो “शरीर” को साधना के लिए अयोग्य जानकर “संथारा” करने वाले थे.
( जानकारी का स्रोत : “श्री मानतुंगसुरी प्रबंध” )
उवसग्गहरं महा प्रभाविक स्तोत्र की रचना
पांचवें और अंतिम श्रुत केवली श्री भद्रबाहु स्वामीजी ने की है.
सामान्य बुद्धि से इसका क्या अर्थ है, नहीं समझा जा सकता.
जैसे “साबर” मन्त्रों का कोई अर्थ नहीं होता,परन्तु बहुत फलदायी होते है.
उसी प्रकार जो मंत्र स्वयं देव ने प्रदान किया हैं,
वो उनके लोक की भाषा ही समझना.
(जैसे भले ही आपको अंग्रेजी बोलनी आती हो पर
जैसे ही आपको अपने गाँव का आदमी मिल जाए
तो तुरंत आप अपनी मातृ भाषा बोलने लग जाते हैं
और आप को वो अच्छा लगता है).
मंत्र विस्तार :
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१. ॐ ह्रीं नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग स्वाहा ||
२. ॐ ह्रीं श्रीं नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग नमः स्वाहा ||
३. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग ह्रीं श्रीं अर्हं नमः ||
४. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग ह्रीं श्रीं अर्हं नमः स्वाहा ||
मंत्र विस्तार कैसे होता है और क्यों जरूरी है, ये बहुत गूढ़ विषय है.
पूछने वाले का जैसा प्रश्न होता है, उसी अनुसार उसे मंत्र दीक्षा प्रदान की जाती है.
उवसग्गहरं महा प्रभाविक स्तोत्र के
अलग अलग गाथाओं के अलग अलग मंत्र भी है.
जैसे पहली गाथा का मंत्र है :
“ॐ ह्रीं उवसग्गहरं कम्म-घण-मुक्कं विसहर फुलिंग मन्त्राय पार्श्वनाथाय श्रीं स्वाहा ||”