श्री उवसग्गहरं महाप्रभाविक स्तोत्र – अर्थ एवं प्रभाव : भाग -4

श्री उवसग्गहरं महाप्रभाविक स्तोत्र – अर्थ एवं प्रभाव : भाग -4

चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ  पणामो  वि बहुफलो होइ
नरतिरि ए सुवि जीवा, पावंति न दुक्ख दोगच्चं || ३ ||

“नवकार” में पांच परमेष्ठी को  “नमस्कार” करने से
पाप नष्ट होने के प्रभाव को बताया गया है और

“लोगस्स सूत्र” में तीर्थंकर “नाम-स्तव” का प्रभाव बताया गया है.

“लोगस्स सूत्र” में “भावपूर्वक वंदन” की बात आती है,
यानि “नमस्कार” से एक स्टेप और आगे है.

 

“नमस्कार” में भाव पूर्वक हाथ जोड़े जाते हैं.

“वंदन” में भाव पूर्वक और “विधि सहित” नमस्कार किया जाता है.
“विधि” वहीँ पर की जाती है, जहाँ “कोई” विद्यमान हो!
इसीलिए लोगस्स “चैत्य-वंदन” सूत्र है क्योंकि यहाँ “तीर्थंकरों” को नाम से “वंदन” है.

विशेष:

1. भद्रबाहु स्वामी ने “नवकार” “से” “लोगस्स” की रचना की.

(लोगस्स पंचम और अंतिम श्रुत केवली श्री भद्रबाहु स्वामी ने

नवकार के पहले पद “नमो अरिहंताणं”  से ही उद्दृत किया है)

और

 

2. “उवसग्गहरं स्तोत्र” की रचना

नवकार और लोगस्स दोनों सूत्रों की “सहायता” से की है.

(i) “लोगस्स में “धम्मतित्थयरे जिणे, “अरिहंते”….”
(यहाँ अरिहंत शब्द “नवकार” से आया है).

(ii) उसी प्रकार “उवसग्गहरं” स्तोत्र में
“पार्श्वनाथ भगवान” का नाम “लोगस्स” से आया है.

 (चूँकि “लोगस्स” नवकार से आया है,

इसलिए “उवसग्गहरं” नवकार और लोगस्स दोनों से उद्दृत हुआ है).

 

इस स्तोत्र की रचना के समय श्री भद्रबाहु स्वामी के मन के भाव
“पार्श्वनाथ” भगवान के प्रति
अत्यंत उच्च कोटि के हो गए थे.

“उपसर्ग” हरने के लिए “पार्श्व यक्ष” को याद किया
क्योंकि “अधिष्ठायक देव” की स्थिति “सेनानायक” जैसी है
(संघ की “रक्षा” जो करते हैं).

यहाँ पहले “पार्श्व यक्ष” को याद इसलिए किया क्योंकि वही
तुरंत कार्य कर सकता है, जिसको “जिम्मेवारी” दी गयी
हो.

 

इसी स्तोत्र में “पार्श्वनाथ भगवान” के

नाम-स्मरण का इतना प्रभाव बताया गया  है
कि पूरा स्तोत्र पढ़ने की बात एक बार किनारे रखो,

मात्र “पार्श्वनाथ भगवान” को किया गया “प्रणाम” भी
दूसरे के किये “दुष्ट मंत्र” का निवारण करने में समर्थ है.

(कृपया “पोस्ट” को सरसरी निगाह से ना पढ़ें, नहीं तो “समझने” में काफी परेशानी आएगी या क्या कहा गया है, ये कुछ भी समझ में नहीं आएगा – कम से कम इस पोस्ट को   ३-४ बार पढ़ें. फिर भी समझ में ना आये या शंका रहे तो “गुरुओं” से “मार्गदर्शन” ले सकते हैं).

फोटो:
श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ,
केसरियाजी देरासर, पालिताना.

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