श्री लघु शान्ति स्तोत्र
(शान्तिं शान्ति निशांतम्….)
तक्षशिला नगरी में महामारी के समय सारे शासनदेवता
मिलकर भी एक दुष्ट शाकम्भरी देवी को जीत नहीं पाये.
स्वयं शासनदेवताओ ने ही श्रावको को नाडोल में विराजीत
श्री मानदेव सूरी जी से विनती करने के लिए कहा.
सबसे समझदार समझे जाने वाले श्रावक की भूल से
और गुरुदेव का अविनय करने के कारण
श्री मानदेव सूरी जी सेवा में प्रत्यक्ष विराजित
श्री जया और विजया देवी ने उसे उठा कर बाहर फेंका.
संघ की रक्षा मेरे लिए सर्वोपरि है इसलिए स्वयं ना जाकर
जया-विजया देवी को ही “आशीर्वाद” दिया
और महाप्रभविक श्री लघु शांति की रचना की.
इससे उपद्रव शांत हुआ.
दैविक-प्राकृतिक विपदाओं के निवारण के लिए
इस स्तोत्र का पाठ हर रोज करना चाहिए.
कड़ी शर्त:
“भव्यानां” कृतसिद्धे……………..(नवमी गाथा)
सम्यग् दृष्टीनां ………….(दसमी गाथा)
इस स्तोत्र का “शीघ्र प्रभाव”
उन्ही लोगो को प्राप्त होता है जो
“सम्यकधारी” होते है.
जैन धर्म में सम्पूर्ण श्रद्धा रखने वाले “श्रावकों” को रोज “लघु शान्ति” का पाठ करना वो सब कुछ दे सकता है जो “सबके” लिए श्रेय है. अर्थात ये स्तोत्र न सिर्फ “पाठ” करने वाले को “शान्ति और समृद्धि” प्रदान करेगा बल्कि साधक के संपर्क में ही वैसे आदमी आएंगे जो उसे शांति प्रदान करेंगे.
इसका गूढ़ अर्थ ये हुआ कि अभी वर्तमान में साधक के साथ रहने वाले (परिवार, मित्रगण, इत्यादि जो अभी कोई अशांति का कारण बन रहे हैं, वो सब “शांत” हो जायेंगे यानि उनका भव भी सुधरेगा).
फोटो:श्री शांतिनाथ भगवान,
श्री मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय,
गोपीपुरा, सूरत