ये सूत्र भगवान महावीर ने दिया है.
इसका “अर्थ” तो स्पष्ट है
परन्तु “भावार्थ” बहुत गहरा है.
सीधे अर्थ में – खुद भी जिन्दा रहो और दूसरों को भी जिन्दा रहने दो.
परन्तु आज के ज़माने में कौन “जी” सकता है?
जो बलवान हो!
यदि खुद ही “जीने” की स्थिति में ना हो
तो दूसरे को “जीवन” कैसे दे सकता है?
भगवान महावीर के शारीरिक बल का वर्णन उनके जीवन चरित्र से मिलता ही है.
क्षमा वीरस्य भूषणम!
किसी को “क्षमा” तो “वीर” (बलवान) ही करते हैं!
जो “वीर” ना हो, उसे तो गलती ना करने पर भी गुंडों से माफ़ी मांगनी पड़े, ऐसी स्थिति होती है.
जरा सोचें, आज जैनों कि स्थिति कहाँ पर है!
आज “एलान” कर दो कि जैनों को अपना खुद का “भुजबल” बढ़ाना होगा.
कोई ये ना समझे कि मुट्ठी भर जैन क्या कर सकते हैं?
मुट्ठी भर “आतंकवादी” जब “कहर” मचा सकते हैं पूरे देश में
तो क्या “वीरता” के लिए हमें दूसरों कि शरण लेनी पड़ेगी
जब हम स्वयं कुल से क्षत्रिय हैं?
पांडवों ने अनेक युद्ध लड़ें है और जीवन के अंत में “मोक्ष” गए हैं.
भामाशाह “दानवीर” ही नहीं सच्चे अर्थ में “वीर” भी थे.
दिन में “युद्ध” लड़ते थे और शाम को “प्रतिक्रमण” करते थे.
ये सोच पाना भी आज हमारे लिए बहुत आश्चर्यजनक हो सकता है.
परन्तु जैनों के लिए कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है.
लाखों जिनमंदिर ही नहीं, एक समय पालिताना में भगवान आदिनाथ का “मस्तक” भी क्रूर शासकों ने “काट” दिया था.
क्या इसी प्रकार की स्थिति स्वतंत्र भारत में वापस नहीं आ गयी है?
यदि सच्चा “प्रतिक्रमण” करना है तो “बुद्धि” से आई हुई विपदा का डट कर सामना करो और फिर “प्रतिक्रमण” करो.
आज हमें ऐसे “धर्मगुरुओं” की जरूरत है जो “शासनसम्राट” कहलाने की योग्यता रखते हो.
“प्रवचन” के नाम पर मात्र “मैनेजमेंट और सामाजिक सुलह् कैसे रहे” इन बातों की जरूरत नहीं है.
ऐसा ज्ञान तो दिन भर (रात भर भी) फेसबुक और व्हाट्सप्प पर मिलता रहता है.
जरूरत है कुछ ऐसे सच्चे “क्रांतिकारी” संतों की जो “साध्विओं” की रक्षा के लिए स्वयं “तलवार” लेकर मैदान में आ गए थे, जब श्रावक “निकम्मे” हो गए थे.
आई हुई विपदा का सामना करने के लिए नीचे लिखे मंत्र का जाप करें:
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अर्हं श्री धर्मचक्रिणे अर्हते नमः ||
हर व्यक्ति कम से कम 27 बार रोज गुणे.
जिन्हें “वास्तव” में चिंता है समस्या की, वो 12,500 जाप करें या 1,25,000 भी!
पर जाप पूरे होने पर भी रोज कम से कम 27 बार इस मंत्र को रोज गुणे.
जाप के समय सामने भगवान आदिनाथ की तस्वीर रहे.
उनके जैसे सौभाग्य और बल की प्रार्थना करें और उनके जैसे कुल की भी!
इसी मंत्र का जाप करने के लिए jainmantras.com में पहले भी बताया गया था जब “संथारा-विवाद” आया था और ये लिखा गया था कि ये समस्या बहुत जल्द ही दूर होगी.
विशेष:
१. कुछ संत क्रांतिकारी “विचार” वाले होते हैं.
२. कुछ संत स्वयं “क्रान्ति” करते हैं जब समाज सोया हुवा होता है.
वर्तमान समस्या बहुत विकट है. विकट समस्या का समाधान करने के लिए सभी को एकजुट होना होगा. कोई भी जैन ये विचार ना करे कि इस समस्या के निदान करने के लिए हमारे सम्प्रदाय के “संत” का नाम ऊपर आना चाहिए, यदि अभी भी यही विचार रहा तो समस्या और विकट होगी.
आज “हिंसा” और “अहिंसा” का सीधा टकराव हुआ है.
“अहिंसा” कभी “कटेगी” नहीं और कटेगी तो “हिंसा” ही
क्योंकि उसकी खुद की “शुरआत” ही “काटने” से होती है.
(इस समस्या का निवारण 54 दिन में होगा. इससे पहले भी हो सकता है यदि ज्यादा लोग मंत्र जाप करें).