अपनों से बैर – खबरदार!
अति मित्र और अति शत्रु हरदम पास ही रहते हैं.
दूर रह कर अति मित्रता या अति शत्रुता नहीं होती.
जैसे भाइयों में आपस की कटुता.
ये अति शत्रुता भव भव तक साथ चलती है.
श्री पार्श्वनाथ भगवान के सम्यक्तत्व प्राप्ति के
दस भवों के भाई ने अंतिम भव तक उनकी शत्रुता नहीं छोड़ी
और
अंतिम भव (पार्श्वनाथ)
में भी पहले कमठ और बाद में मेघमाली के रूप में उपसर्ग दिए.