“प्रभु दर्शन सुख सम्पदा, प्रभु दर्शन नव निध
प्रभु दर्शन थी पामिये, सकल पदारथ सिद्ध ||”
अत्यंत अहोभाव से श्री अरिहंत के
दर्शन करने मात्र से
१. सुख संपत्ति प्राप्त होती है.
२. नव निधि प्राप्त होती है.
३. सकल सुख “मोक्ष” प्राप्त होता है.
जैन धर्म में कहीं भी भगवान से “मांगने”
की बात नहीं कही गयी है.
जो मांगता है, वो “भिखारी” है.
जिस श्रीसंघ के श्रावक को स्वयं तीर्थंकर भी
“नमो तित्थस्स” कह कर नमस्कार करते हों,
वहां भला मांगने की बात “सोची” भी कैसे जा सकती है?
मंत्र जपते समय यदि आँखों के सामने
भगवान की अभिमंत्रित मूर्ति हो,
तो अधिष्ठायक देव शीघ्र सहायता करते है.
चार सौ वर्ष प्राचीन इस प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा
खरतर गच्छ के चौथे दादा गुरु
फोटो:
साक्षात और प्रकट प्रभावी
श्री आदिनाथ भगवान, बीकानेर
श्री जिन चन्द्र सूरी जी
ने अपनी “वैक्रिय लब्धि” से ( दो रूप धारण करके )
मोतीसा टूंक, पालिताना और
श्री आदिनाथ भगवान, नाहटों का मोहल्ला,
बीकानेर (जो फोटो दिया है)
एक साथ, एक ही दिन में, एक ही मुहूर्त्त में करायी है.
इस प्रतिमाजी के जैसे अद्भुत नेत्र हैं,
वैसे नेत्र और कहीं देखने को नहीं मिलते.
विशेष:
पांच साल पहले वर्तमान में
एक बहुत बड़े माने जाने वाले संघनायक पर
“ऊपर” की आपदा इसी प्रतिमाजी के आगे
“विधि” करने से दूर हुई है.