जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा धर्म करता है.
ये वाक्य विरोधाभासी लगता है, परन्तु है नहीं.
प्रश्न :
क्या व्यक्ति “धर्म” की रक्षा” करने में समर्थ होता है?
उत्तर:
यहाँ धर्म की “रक्षा” करने से अर्थ है – धर्म का किसी भी स्थिति में दृढ़ता से पालन करना.
“शंका”
जो व्यक्ति धर्म करता है, उसकी परीक्षा क्यों होती है?
उत्तर :
एक “मटकी” भी लेते हैं, तो उसे ठोक बजा कर लेते हैं.
पाठकों को उत्तर समझ में आ गया होगा.
प्रश्न:
“रक्षा” की बात क्यों उठती है?
उत्तर:
जब व्यक्ति को “भय” होता है.
प्रश्न:
भय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
भय सात प्रकार के होते हैं.
शास्त्रीय भाषा का प्रयोग ना करके सीधी भाषा में भय के उदाहरण हैं:
१. मनुष्य को मनुष्य का भय
(राजा, मंत्री, शत्रु, इत्यादि)
२. मनुष्य को पशु, दुष्ट देव इत्यादि का भय
(विशेषकर हिंसक पशुओं का, कइयों को तो चूहे से भी डर लगता है, ये पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण भी होता है).
३. एक्सीडेंट होने का भय
४. लूट जाने का भय
५. आजीविका भय
(अचानक से ऐसा प्रसंग भी हो कि अब नौकरी रहेगी या नहीं, डूबा हुआ पैसा आएगा या नहीं, इत्यादि).
६. मृत्यु का भय
(रोग का भय भी इसमें शामिल है )
७. अपयश भय
प्रश्न:
क्या भय के निवारण का “जैन धर्म” में कोई मंत्र है?
उत्तर:
अनादि काल से जैनों को वो सूत्र प्राप्त है वो सब प्रकार के भय को हरने में समर्थ है.
नीचे लिखा सूत्र रोज पढ़ें:
ये सूत्र हमें “मुफ्त” में मिल गया है इसलिए हमें इसकी क़द्र नहीं है. अन्यथा ये सब कुछ देने में समर्थ है. विशेष जानकारी के लिए पढ़ें : 2016 में jainmantras.com की पब्लिश होने वाली पुस्तक: जैनों की समृद्धि के रहस्य.