जैन धर्म के अधिकाँश स्तोत्र “मंत्रगर्भित” हैं.
ज्यादातर जैनों को इस बात का पता नहीं है.
इसीलिए वे ज्योतिषी, ढोंगी साधुओं एवं बाबाओं से
चमत्कार की आशा में चक्कर काटते रहते हैं.
ऐसे हज़ारों स्तोत्र जैन धर्म में हैं जो मंत्र गर्भित हैं.
सभी स्तोत्र सभी के लिए तुरंत फलदायी नहीं होते.
इसे ऐसा ही समझें जैसे
हर किसी को हर मौसम सूट नहीं होता,
हर किसी को हर धंधा सूट नहीं होता,
और तो और
एक ही धंधे में लगे सारे व्यक्ति
एक सी ही पूँजी लगाकर,
एक सा नफा नहीं कमाते.
जैसा जिसका
१. मनोबल है,
२. विधि है,
३. गुरु या मन्त्रज्ञ का आशीर्वाद/सपोर्ट है,
वैसा ही फल उसको स्तोत्र से प्राप्त होता है.
स्तोत्र बहुत प्रभावशाली होते है.
जैसे श्री गौतमाष्टक की तीसरी गाथा में कहा गया है.
“श्री वीरनाथेन पूरा प्रणीतम्, “मन्त्रम्” महानंद “सुखाय” यस्य:
ध्यायन्त्यभि सूरी वरा: समग्रा:, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ||३||
मंत्र:
ॐ ह्रीं श्रीं गौतमाय सर्व लब्धि निधानाय ॐ ह्रीं नमः ||
(ऊपर वाली गाथा मात्र एक बार पढ़ कर,
६ महीने लगातार
श्री गौतम स्वामी जी की फोटो के सामने जप करें
– मात्र २ माला रोज की – मतलब १० मिनट का जप )
मंत्र रहस्य:
इस मंत्र में “सर्व लब्धि” शब्द बहुत प्रभावशाली है
और धंधा सही नहीं चलते हुए भी
सारे कार्य आसानी से पूरे हो जाते हैं.
(कैसे होते हैं, ये “बुद्धि” की समझ से बाहर हैं).
जैन धर्म के स्तोत्रों का पाठ पढ़ने से
(विशेषत: प्रतिमाजी या फोटो के सामने)
मन के भाव शुद्ध होते हैं.
जिससे कर्म जल्दी कट कर
पुण्य का उदय होता है.
जब पुण्य का उदय होता है
तक बाधाएं अपने आप समाप्त होती है.
हर पोस्ट को अच्छी तरह तब तक पढ़ें
जब तक “सार” समझ में ना आ जाए.
पोस्ट सम्बन्धी यदि कोई शंकाएं हो,
तो लिखें.
फोटो:
सुरेन्द्र कुमार राखेचा,
(इन्द्र के वेश में)
भगवान महावीर स्वामी जिनालय
जीर्णोद्धार के समय (2012),आसानिओं का चौक,बीकानेर