प्रश्न :

नवकार में “सव्व पावप्पणासणो” की बात आती है.

मतलब इसके गुणने से सारे पाप नाश होते हैं.

शास्त्रों में ये भी कहा गया है कि
मात्र एक नवकार गुणने से
५०० सागरोपम के पापों का नाश होता है.

ये भी कहा गया है कि एक नवकारसी करने से
१०० वर्ष का नरक टलता है.

 

दोनों बातों में फर्क क्या हुआ?

पहली बात पिछले पापों का नाश करने की है.
दूसरी बात जो पाप इस भव में किये हैं
और आगे भोगने पड़ेंगे, उनसे  बचाव करने की है.

तो कौसा कार्य पहले होना चाहिए?

“घर” यदि पहले से “गन्दा” हो तो वहां “इत्र” नहीं छिड़का जाता.
और
“इत्र” छिड़कने के बाद “घर” वापस  “गन्दा” करना बर्दाश्त नहीं होता.

इतनी सामान्य सी बात यदि हमें समझ आ जाए,
तो हर आदमी ये जरूर ध्यान रखेगा कि

 

जो पाप मैंने
किये है, वो धो डालूं

और नए पाप ना हो पाएं,

उसका ध्यान रखूं.

 SIXER :

हमारे पापों का नाश करता है : नवकार !
“सव्व पावप्पणासणो”

इस शब्द की गहराई को जानो.

प्रकट रूप से नवकार “पाप” नाश करता है.

“नाश” उसी वस्तु का होता है, जो वर्तमान में (विद्यमान) हो.

अब “चेक” हमें करना है कि
हमारी “आत्मा” की   स्थिति कहाँ पर है.

उसने कितने पाप किये हैं….

गिनती भी नहीं है…..
ज्ञान भी नहीं है…..
पाप चालू है….
इस बात का एहसास भी नहीं है….

 

अब जानो नवकार के “रहस्य” को!

कितने पाप हमने अब तक “किये हैं,”
इसका ज्ञान/भान  रखने की

हमें आवश्यकता नहीं है.

क्योंकि “सव्व पावप्पणासणो”  पद
अपने आप  उसकी “केयर” कर रहा है.

पढ़ते रहें और दूसरों को भी कहते रहें…

और बताओ
और बताओ ….. 🙂

jainmantras.com

 

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