500 शिष्यों के नायक “इंद्रभूति” (गौतमस्वामी) को इस बात का संशय था कि
“आत्मा” है या नहीं!
(कहे जाने वाले बड़े बड़े सम्प्रदायों; जिनके लाखों फोल्लोवेर्स हों,
उनकी भी यही स्थिति हो सकती है).
मात्र ये एक “संशय” उनके पूरे “ज्ञान” को “झकझोर” रहा था (Feeling irritated).
(जैसे परीक्षा में टिपिकल प्रश्न का उत्तर देते समय मात्र उसका एक पॉइंट ही विद्यार्थी को उलझन में डाल देता है और यदि वो प्रश्न भी पहला ही हो तो फिर परीक्षार्थी पूरा पेपर ही अच्छी तरह नहीं दे पाता…).
और भगवान महावीर से उस “शंका” का निवारण होते ही, उनके शिष्य भी बन गए!
“शंका” मात्र एक…. और जिसने वो शंका मिटाई, उसका “शिष्य” बन जाना…खुद के 500 शिष्यों के होते हुए !
मानो कि ये “घटना” आपके लिए ही घटी हो – मतलब आप ही “इंद्रभूति” थे और आप के ही 500 Followers थे…..(आजकल फेसबुक में भी आपके कई फोल्लोवर्स होते हैं…), उनके मन में आप के प्रति क्या विचार आया होगा!…..कि आज तक हम उस आदमी को Follow (फॉलो) कर रहे थे जिसे जड़ और चेतन का भी ज्ञान नहीं था!
परन्तु “गौतमस्वामी” ने अत्यंत “विनयपूर्वक” उसे ना सिर्फ उनके स्पष्टीकरण को “स्वीकार” किया, बल्कि खुद को “पूरा” “भगवान महावीर” को “सौंप” दिया.
आप सोच रहे होंगे कि क्या ऐसे गौतम स्वामी को “आत्मा” जैसी बात का भी ज्ञान नहीं था?
प्रश्न की पूर्वभूमिका:
भगवान महावीर द्वारा “आत्मा” की शंका का निवारण करने के कारण और ‘आत्मा’ के बारे में यही ज्ञान हमारे आचार्यों, उपाध्यायों और साधुओं की पट्ट परंपरा के कारण हमें और हमारे पूर्वजों को प्राप्त होता रहा है.
आत्म-चिंतन :
क्या आपको ये “ज्ञान” हो गया है की आप ये मनुष्य जीवन “आत्मा” की उन्नति के लिए जी रहे हैं?
क्या ऐसा कभी “एहसास” (feeling) हुआ है कि “आत्मा” (soul) का “अस्तित्व” (existence) इस “शरीर”(body) में है,
यदि हाँ, तो समझ लेना “आत्मा” के “उद्धार” (moksh) की तैयारी शुरू हो गयी है.