जैन मंदिरों मे जितनी “भव्य” और “प्राचीन” प्रतिमाएं हैं,
उतनी संसार के अन्य किसी धर्म की नहीं हैं.
क्या ये आश्चर्य नहीं है कि जैनी होते हुए भी कुछ सम्प्रदाय
जैन मंदिर ना जाकर शिवजी, हनुमानजी, गणेशजी, लोकल भेरुंजी,
इत्यादि मंदिरों में धड़ल्ले से जाते हैं.
किसी कारणवश जैन मंदिर के पास जाकर भी मंदिर में प्रवेश इसलिए नहीं करते
क्योंकि ऐसा करने से उनके “सम्यक्तत्व” का नाश हो जाएगा..
(उनके अनुसार)
क्या इसका मतलब ये निकालें कि जो मंदिर जाते हैं,
उनके “सम्यक्तत्व” का नाश हो चुका है?
कैसी भ्रामक मान्यता है!
फोटो :
५०० वर्ष से भी अधिक प्राचीन एवं अद्भुत श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा, रांदेर गाम, सूरत.
(इसी मंदिर के पास श्री यशोविजयजी ने श्रीपाल रास की अधूरी रचना पूरी की).