उवसग्गहरं स्तोत्र में “विसहर” शब्द बहुत ही प्रभावशाली है.
परंतु अधिकतर लोग इसका उच्चारण “विष्हर” करते हैं.
ये हरता है : मन का विष (बुरे विचार)
ये हरता है : शरीर का विष (रोग)
ये हरता है : वाणी का विष (कड़वे वचन)
ये हरता है : दरिद्रता का विष
ये हरता है : क्रोध का विष
हे हरता है : अभिमान का विष
ये हरता है : माया का विष
ये हरता है : लोभ का विष
कितना कहें,
अकेला उवसग्गहरं स्तोत्र सभी कुछ देने में समर्थ है
और जो नहीं होना चाहिए, उसको “हरने” में समर्थ है.
क्या अब भी हम “पार्श्वनाथ” की शरण में नहीं जाएंगे?
एक “शब्द” जो हमारी सब समस्यायों का निवारण कर सकता है
तो फिर “पार्श्वनाथ भगवान्” की महिमा का वर्णन “शब्दों” से कर पाएंगे?
बंधुओं और बहिनों !
दूसरे धर्म और उनकी क्रियायों, मन्त्रों को छोडो.
अपने घरों को टटोलो, किस किस को “घर” में “घुसा” रखा है
फिर भी “रोना” जारी है (समस्यायों का अंत नहीं हुआ).
घर में सिर्फ एक पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर्याप्त है
और एक उवसग्गहरं स्तोत्र पर्याप्त है
हमारे सभी दुखों का निवारण करने के लिए
और सभी सुखों को प्राप्त करने के लिए.
(जिन्हें सांसारिक सुख नहीं चाहिए, उन्हें ये स्तोत्र मोक्ष देने में भी समर्थ है
व्यक्ति यदि नहीं चाहे, तो भी ये स्तोत्र उसे “पकड़कर” “मोक्ष” की ओर “धक्का” दे देगा
जैसे कि “तैरना” सिखने वाले को “शिक्षक” पानी में “धक्का” देता है,
जबकि वो “पानी” में जाने से डरता है
और फिर सीखने के बाद…..तैरता ही रहता है) .
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