stop business loss with jainmantras

बिज़नस का पैसा रुका हुआ है, मैं किस मंत्र का जाप करू?- Part I

प्रश्न:
बिज़नस का पैसा रुका हुआ है,
मैं किस मंत्र का जाप करू?
उत्तर:
बिज़नेस में पैसा रुकने के कई कारण होते हैं.
 
१. “ज्यादा बिज़नेस” करने की चाह में “गलत” आदमी को माल बेचा हो.
२. जब माल बेचा तब बिज़नेस अच्छा था, पर पेमेंट ड्यू होते समय “बिज़नेस” मंदा हो गया हो.
३. माल के भाव ही कम हो गए हों (जैसे डिज़ाइन बदल गयी हो).
 
पहले वाले किस्से में जिसे माल बेचा है उसके ग्रह “अच्छे” हैं या नहीं, कह नहीं सकते. पर उसकी नियत अच्छी नहीं है, ये बात पक्की है. ये भी हो सकता है कि जिस तरह “हमें” “बिज़नेस” करना ना आता हो, वैसे ही उसे भी ना आता हो और उसका पैसा भी फंसा हुआ हो.
 
दूसरे और तीसरे किस्से में माल लेने वाले और बेचने वाले दोनों के ग्रह ख़राब हैं, ये पक्की बात है.
 
ये तो हुआ “स्थिति” का हुआ “व्यावहारिक बुद्धि” से विश्लेषण.
यदि “गलत” आदमी को माल बेचा है, तो “पैसा” तभी आएगा जब वो “सही” हो सकेगा. ऐसे किस्सों में “मंत्र” विज्ञान का सहारा लेने पर बहुत ज्यादा समय लग सकता है क्योंकि “दूसरे” की “बुद्धि” को “बदलना” आसान नहीं है. (हमारी ही बुद्धि को “बदलना” कहाँ आसान है)!
 
जन्म कुंडली में कर्म स्थान (दसवां घर), भाग्य स्थान (नौवां घर), लाभ स्थान (ग्याहरवां घर) और धन स्थान (दूसरा घर) का विश्लेषण करने पर ये निश्चित हो सकता है की “दोष” कहाँ पर है!
 
अलग अलग स्थिति में अलग अलग मंत्र का प्रयोग करना होता है.
 
मूल रूप से पैसा फंसने का कारण “राहु” ग्रह का दूषित होना है. क्योंकि वो दिमाग को भ्रमित करता है. ऐसा होने पर व्यापारी को माल बेचते समय बहुत नफा नज़र आता है पर हकीकत में मूल पैसा भी नहीं आता.
इससे बचने के लिए जैन उपाय:
 
सबसे पहले अरिहंत की “वास्तव” में शरण में आएं.
अरिहंत जैसी “समृद्धि” और किसी के पास नहीं होती.
पर आश्चर्य इस बात का है कि वो उसे भोगते जरा भी नहीं हैं.
 
एक जैन होने के नाते “श्रावक” का कर्त्तव्य है
कि हम कमाएं तो “धर्म कार्यों” को पूरा करने के लिए.
(गृहस्थी चलाने के लिए तो पैसा चाहिए ही कितना)?
 
जिसने समय समय पर “दान” दिया है,
उसका “पैसा” कभी फंसता या डूबता नहीं है.
(कुछ डूबता भी है,तो भी वर्ष के अंत में तो नेट नफा ही होता है).
(इसका रहस्य “जैनों कि समृद्धि” के रहस्य – पुस्तक में प्रकट किया जाएगा).
 
इसलिए सबसे पहले ये चेक कर लें
कि अपनी आय का कम से कम
10 प्रतिशत भी दान में लगाया है?
क्योंकि ज्यादातर तो अपनी आय का 2 प्रतिशत भी
“धर्म-कार्य” में पैसा खर्च नहीं करते.
यदि नहीं किया है, तो पहले इस “पहलू” पर “काम” करना शुरू कर दें.
(थोड़ी रकम से ही सही,
यदि अभी “स्थिति” नहीं है तो मन में ही ऐसा सोचना चालू कर दें
कि पैसा आने पर इतना धर्म कार्य में लगा दूंगा,
“पुण्य” आज से ही प्रकट होना शुरू हो जाएगा).
 
कोई मंत्र जप की जरूरत नहीं है.
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