नवकार मंत्र की प्रभावकता-1 से आगे:
(पहले वाली पोस्ट पढ़े बिना इसे समझना बहुत मुश्किल होगा).
जरूरत बस हमें इस पद में “विश्वास और श्रद्धा” जगाने की है.
पूरे जन्म में भी ऐसी भावना मन में बैठ गयी, तो समझ लेना ये “मनुष्य भव” सफल हो गया.
चाहो तो अभी से, इसी क्षण ये “विश्वास और श्रद्धा” बिठा सकते हो.
इतना सरल परन्तु अति प्रभावशाली मंत्र हमारे गणधरों और गुरुओं ने हमें “परंपरा” से दिया है.
(“अनुभव” होने में समय लग सकता है, पर “श्रद्धा” करने में समय नहीं लगता – जैसे एक व्यक्ति “धंधा” इसलिए करता है कि उसे उस धंधे पर विश्वास (श्रद्धा) है जबकि वास्तव में जब नफा होगा तभी उसे उसका “अनुभव” होगा).
यदि तुरंत ना हो तो भी प्रयत्न जारी रखना, “अरिहंत” तक पहुँचने की!
विशेष:
चूँकि अरिहंत “मनुष्य जन्म” लेते हैं, इसलिए उनका “आकार” (शरीर) होता है.
इसी कारण जैन धर्म में ज्यादा से ज्यादा मंदिर बनाये जाते हैं
और वो भी इतने “भव्य” मानो “देवलोक” में बने हों!
नवकार गुनते समय “नमो अरिहंताणं” पद मात्र बोलना नहीं है.
इस पद (अक्षरों – नमो अरिहंताणं) पर ध्यान लगाना है.
फिर इस पद में समाहित “अरिहंतों” पर ध्यान लगाना है.
एक आकार लिए हुवे मनुष्य के लिए “निराकार” का “ध्यान”
लगाना लगभग “असंभव” जैसा है.
इसलिए शुरुआत में “आकार” का ध्यान लगाना “सरल” है.
मंदिर में अरिहंतों की भव्य मूर्ति इसमें बहुत सहायक बनती है.