Note: नवकार मंत्र की प्रभावकता-1 और 2 पहले पढ़ें.
ये कहा गया कि “भूतकाल” में हुए तीर्थंकरों को भी “नमो अरिहंताणं” बोलने से नमस्कार हो जाता है.
प्रश्न:
“भूतकाल” में हुवे तीर्थंकरों को नमस्कार करने का क्या फायदा है?
प्रतिप्रश्न: हम हमारे स्वर्गीय पूर्वजों को नमस्कार क्यों करते हैं?
उत्तर: उनका “आशीर्वाद” पाने के लिए!
प्रश्न : क्या मात्र किसी को नमस्कार करने से वो “आशीर्वाद” देते हैं?
उत्तर: हाँ, ख़ास करके यदि वो “अपने” हों.
प्रतिप्रश्न: क्या तीर्थंकर “अपने” हैं?
उत्तर: नहीं तो “किसके” हैं?
विशेष:
एक जैनी के मन में तो ये शंका भी नहीं उठ सकती कि क्या “तीर्थंकर” “हमारे” हैं?
निष्कर्ष:
तीर्थंकरों का हमारे पर राग नहीं है, इसका मतलब ये नहीं कि उनका हमारे प्रति “प्रेम” नहीं है. यदि नहीं होता, तो अपने “ज्ञान” को हमें क्यों बताते? हमें क्यों “शिक्षा” देते? आज ये ज्ञान हमें फ्री में मिल रहा है इसलिए हमें उसकी क़द्र नहीं है. हमने तो “शिक्षा” उसे मान लिया है जहाँ हम फीस भरते हैं और “सर्टिफिकेट” मिलता है!
घर के “बड़े-बुजुर्ग” यदि “मौज मस्ती और धुँआ उड़ाने के लिए” पैसा नहीं देते तो क्या हमें प्रेम नहीं करते? उनका काम समझाना है, शिक्षा देना है.
प्रश्न था:
“भूतकाल” में हुवे तीर्थंकरों को नमस्कार करने का क्या फायदा है?
हमारे दुखों का कारण ही हमारा “भूतकाल” है. पूर्व जन्म में हमने तीर्थंकरों का संयोग भी पाया पर “ढंग” से कभी उनकी “वाणी” सुनी नहीं. सुनी भी तो अमल की नहीं. रिजल्ट: Zero ही नहीं, Minus!
हम “प्रतिक्रमण” में भी तो “भूतकाल” में किये हुए पापों का प्रायश्चित करते हैं. “कल”जो पाप जाने-अनजाने में होंगे, उसका प्रायश्चित आज थोड़े ही करते है!
मतलब “भूतकाल” के पापों का “प्रायश्चित” वर्तमान (अभी) में कर रहे हैं.
यद्यपि “तीर्थ” परंपरा अनादि काल से चली आ रही है,
हमने कई बार जिन धर्म पाया भी,
पर पता नहीं
किन किन जन्मों में कैसे कैसे पाप किये,
जिनका “Carry Forward” अभी तक चल रहा है.
हमें इन सब पापों की “याद” आये या ना आये,
“नवकार महामंत्र” उन्हें संपूर्ण नष्ट कर देता है.
“पाप” नष्ट कैसे होंगे, उसके लिए आगे की पोस्ट पढ़ें.