पहले नवकार महामंत्र का विराट स्वरुप 1-11पढ़ें.
हमारा विषय है:-
आत्मा के
कर्म क्षय करना
(केवल ज्ञान प्राप्त होना)
और
मोक्ष प्राप्त करना
(आत्मा का मोक्ष “शरीर” छोड़ने के बाद ही होता है).
हम हैं कि सारा “ध्यान” “शरीर” पर ही लगाते हैं.
ये हमारे जन्म-जन्मान्तर के संस्कार हैं.
हम “गुरु” के पास जाते जरूर हैं,
उनकी सुनते भी हैं,
पर करना हमें वो ही है जो आज तक करते आये हैं.
शरीर पर से ममत्व हटाने के साथ ही सब कुछ “नया प्राप्त” हो जाएगा – और वो भी Permanent!
अभी हम जहाँ रह रहे हैं, यदि कहीं और अच्छी जगह पहुंचना हो (जैसे नया मकान),
तो जहाँ हम रह रहे हैं, वो मकान तो छोड़ना ही होगा.
परन्तु हमें तो ये पता भी नहीं है कि वास्तव में हमारे लिए “अच्छा” होता क्या है!
“अरिहंत” जो बताते हैं, उस पर हमें “संपूर्ण” श्रद्धा नहीं होती.
25 वर्षों से जो दीक्षित हैं, उन्हें भी नहीं है.
श्वेताम्बर समाज में आज ज्यादातर साधू-साध्वियों को अपना अपना स्थान लेना है – भक्तों के पैसों से !
कारण?
“कर्म” को “संपूर्ण” रूप से स्वीकार नहीं किया है. इसलिए कर्म क्षय की बात भी उनके लिए अब “विशेष” नहीं रही.
“टॉप क्लास” उपाश्रय की बात इसलिए करते हैं क्योंकि “बड़े श्रावक” तो अच्छी जगह रह रहे हैं. (जबकि जिन श्रावकों के पास “कुछ” नहीं है, उनके लिए “कुछ” भी करने की बात छोड़ दो, “कहने” की भी तैयारी नहीं है).
“मोक्ष” तो बहुत दूर की बात है.
“धर्म” के नाम पर “अच्छी-अच्छी” सुविधाएँ प्राप्त करना, बहुमूल्य रत्नों की और सोने (gold) की मूर्तियां भी रखना, चमत्कारी माने जाने वालों के “विहार” के समय 4-4 गाड़ियों का आगे पीछे दौड़ते रहना और “छोटे साधुओं” की कोई देखभाल ना करना (जिनकी दीक्षा के समय लाखों का खर्च हुआ था) , ये हमारी वर्तमान व्यवस्था है.
(व्याख्यान तो जबरदस्त देते हैं, बोलने में “शूरा” तो खूब मिल ही जाते हैं).
“आनंदघन जी,” जगत सम्राट आबू वाले “श्री शांतिसुरीजी,” योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरजी (बीजापुर वाले), श्री कलापूर्ण सुरीजी इत्यादि जैसे साधू तो एक इतिहास है!
पाठक सोच रहे होंगे की इन सब बातों “मोक्ष” (सिद्ध) से क्या सम्बन्ध है?
jainmantras.com यही कहता है. इन सब बातों का “मोक्ष” से कोई सम्बन्ध नहीं है फिर भी साधु समुदाय इनकी और आकर्षित हो रहा है.
जो भी साधू वापस गृहस्थ की “सुविधाओं” की और आकर्षित हो रहे हैं,
वो “मोक्ष” मार्ग से भटक गए हैं, बात भले ही “मोक्ष” की करते हों!
विशेष:-
आत्मिक शक्तियों के आगे सारे श्रेष्ठ द्रव्य फीके हैं.
श्री मानतुंग सुरीजी ने भक्तामर स्तोत्र की रचना कोई एक किलो सोने ( 1 kg. gold) की मूर्ति या बहुमूल्य रत्नों (precious stones) की मूर्ति को सामने रख कर नहीं की थी.
आगे नवकार महामंत्र का विराट स्वरुप- 13पढ़ें.
फोटो: सूरिमंत्र का चित्रण