पहले नवकार महामंत्र का विराट स्वरुप 1-12पढ़ें.
“नमो सिद्धाणं” पद का रहस्य ना समझ पाने के कारण ही हम “संसार” में “सुख” ढूंढते हैं.
यदि अनंत सुख को प्राप्त करना है, अनंत समय के लिए सुख को प्राप्त करना है, तो नीचे लिखे मंत्र का जाप करें:
ॐ ह्रीं श्रीं नमो सिद्धाणं ||
ये 8 अक्षर का मंत्र है.
जप संख्या
सामान्य: – 8 लाख
उत्कृष्ट: – 8 करोड़
हमारी जितनी भी समस्याएं है, वो इस मंत्र के प्रभाव से दूर हो जाती है और अशुभ परिस्थितियां भी शुभ में बदल जाती हैं.
और 8 ही कर्म है जिनके नष्ट होने पर सिद्ध अवस्था प्राप्त होती है.
१. ज्ञानावरणीय – जिसके कारण आत्मा को सम्यक ज्ञान नहीं हो पाता.
२. दर्शनावरणीय : जिसके कारण आत्मा को धर्म पर श्रद्धा नहीं हो पाती .
३. अंतराय : जिसके कारण बार बार व्यवधान आते हैं.
४. मोहनीय : जिसके कारण जीव अपने कुल, धन, पत्नी-बच्चों इत्यादि पर मोह करता है.
५. नाम : इसके नष्ट होने पर किसी भी सिद्ध का कोई “नाम” नहीं रह जाता.
६. गौत्र : इसके नष्ट होने पर किसी भी सिद्ध का कोई “गौत्र” नहीं रह जाता.
७. वेदनीय: इसके नष्ट होने पर किसी भी सिद्ध को कोई “रोग” नहीं हो पाता
८. आयुष्य: इसके नष्ट होने पर किसी भी सिद्ध का कोई “आयुष्य” क्षय नहीं होता.
8 ही मंगल होते हैं.
(सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणं – ये पद आपने गुरु मुख से खूब सुना होगा)
1 स्वस्तिक
2 श्रीवत्स
3 नंदावृत्त
4 वर्धमानक
5 भद्रासन
6 कलश
7 मत्स्ययुग्म
8 दर्पण
8 महासिद्धि होती है जिनसे “शरीर” विशिष्ट और असंभव दिखने वाले कार्य कर पाता है.
8 महासिद्धि के नाम और उनके प्रभाव :
१. अणिमा :
बहुत ही छोटा स्वरुप धारण कर लेना. (हनुमान ने लंका में प्रवेश इस महासिद्धि से किया था).
२. महिमा :
अत्यंत विशाल स्वरुप धारण कर लेना (हनुमान ने “पर्वत” इसी कारण उठा लिया था)
३. गरिमा:
अप्रत्याशित रूप से वजन बढ़ा लेना ( लंका में “अंगद” का पाँव इसीलिए कोई उठा नहीं पाया).
४. लघिमा:
अत्यंत हल्का हो जाना (आकाशगमन इसी कारण हो पाता है)
५. प्राप्ति:
किसी भी “वस्तु” को प्राप्त कर लेना.
६. प्राकाम्य:
किसी भी “इच्छित” वस्तु को प्राप्त करना.
७. इशित्त्व:
ईश्वरीय शक्ति प्राप्त होना. (आबू वाले श्री शांतिगुरुदेव)
८. वशित्त्व:
प्रकृति को भी वश में करना (अपनी इच्छा से बरसात करवाना,रोकना इत्यादि).
“सिद्ध” के गुण भी 8 ही होते हैं…….
आगे नवकार महामंत्र का विराट स्वरुप- 14पढ़ें.