अनादिकाल से नवकार महामंत्र का जाप हो रहा है और अनंत काल तक होगा.
ऐसा महामंत्र हमें मिला है.
धरती पर जितने भी जीव दिखते हैं,
उनमें से “मनुष्य” को “छोड़कर” कोई भी
नवकार नहीं गिन सकता.
और आगे की बात:-
“एक भिखारी” नवकार नहीं गिन सकता,
क्योंकि वो उसे “प्राप्त” ही नहीं है,
और ना ही वो “सोच” सकता है उसे प्राप्त करने की!
क्योंकि उसका पुण्य ही उदय में नहीं आया है.
उसका तो पाप उदय में आया है इसलिए मनुष्य
जन्म लेकर भी अंत में प्राप्त कुछ भी नहीं करता.
और तो और जो भिखारी मंदिर के बाहर बैठ कर भीख मांगते हैं,
वो कभी “मंदिर” के “अंदर” प्रवेश करके “भगवान के दर्शन” तक नहीं कर पाते.
अरे! उसको तो “गुरु” भी प्राप्त नहीं है.
रोज गुरु उनके पास से गुजरते हैं, पर भिखारी उनको नमस्कार नहीं कर पाते.
क्योंकि उनका इतना “पुण्य” भी नहीं है कि वो उनको नमस्कार करने का “विचार” भी कर सकें!
अब हम सोच सकते हैं कि
“सब कुछ पास में होते हुवे” (देव, गुरु और धर्म)
भी जो व्यक्ति इनका “सान्निध्य” प्राप्त नहीं करते
(इनके दर्शन और श्रवण नहीं करते)
उनकी स्थिति कैसी है.
यदि जीवन में किसी भिखारी को हमने नवकार सुनने के लिए तैयार भी कर लिया
तो भी हम एक जीव का “कल्याण” कर सकते हैं.
(भगवान महावीर के कहने पर भी “कपिला दासी” अपना कल्याण नहीं कर पायी क्योंकि उसने अरिहंत की शरण स्वीकारी नहीं).
नवकार जपने वाला हर व्यक्ति “विश्व कल्याण” की बात करता है.
भले ही वो “प्रकट” ना हो.
जो “प्रकट” होता है, वो दिखने में “विशाल” हो सकता है
पर “अप्रकट” तो “विराट” होता है.
मतलब जो दिख सके तो “विशाल”
और जो हमारी आँखों से ना दिख सके वो है “विराट!”
(सिर्फ केवली ही उसे देख पाते हैं).
नवकार जपते समय कहीं भी मात्र “स्व-कल्याण” की बात नहीं आती.
वो तो ये कहता है :
“सव्व पावप्पणासणो”
यानि सब पापों का नाश करने वाला है.
“अप्रकट विराट” स्वरुप है :
“सबके” पापों का नाश करने वाला है!
पर उसके पाप का नाश होता है,
जो उसकी शरण में आता है.
भले ही उसे “नवकार” ना आता हो.
इसीलिए वो जीव (तिर्यंच भी – जैसे पार्श्वनाथ भगवान ने जलते नाग और नागिन को नवकार सुनाया और वो “धरणेन्द्र और पद्मावती” के रूप में अवतरित हुवे) जो अंत समय में “नवकार” सुन पाते हैं,
उनका कल्याण हो जाता है.
1,००,००० मुख हों, तो भी नवकार की महिमा कही नहीं जा सकती.