कलिकाल कल्पतरु गुरु वल्लभविजयसूरी के 72 वें स्वर्गारोहण के उपलक्ष में विशेष:-
एक गुरु अपने गुरु के चरणों में
आज तक गुरु-शिष्य की बात ही ज्यादा कही जाती रही है.
गुरु का गुरु कौन है, ये जान लें तो पता पड़ेगा कि उसने हमारे गुरु को कैसे तैयार किया.
फिर हमारा शीश दादा गुरु के प्रति झुके बिना नहीं रहेगा.
गुरु के आगे तो झुकता ही है.
“श्री वल्लभ गुरु के चरणों में, मैं नित उठ शीश झुकता हूँ.
मेरे मन की कली खिल जाती है, जब दर्श तुम्हारा पाता हूँ.”
पूरा संघ जिस भाव से इसे गाता है, वो भाव कैसे आये, कोई तो कारण रहा होगा.
वल्लभ गुरु के जीवन के प्रसंग मन को झकझोरने वाले हैं.
वल्लभ नाम का अर्थ ही प्यारा होता है.
जगवल्लभ नाम से जाने जाने वाले श्री पार्श्वप्रभु जिस प्रकार सबके प्यारे हैं
उसी प्रकार वल्लभ गुरु भी हम सभी के प्यारे हैं.
पड़दादा गुरु आत्माराम जी म.सा. की पाट परंपरा में गुरु वल्लभ सीधे नहीं आते,
छलांग लगा कर आते हैं. बचपन का नाम भी था “छगन”.
आत्माराम जी ने उन्हें दीक्षा दी थी अपने प्रशिष्य श्री हर्षविजय के शिष्य के रूप में.
परन्तु अपने गुणों के बल पर आगे जाकर पाट पर बैठे श्री आत्माराम जी के.
गुरु वल्लभ के गुणों की लिस्ट बहुत लम्बी है.
83 वर्ष के जीवन में जितना कार्य उन्होंने श्रीसंघ के लिए किया
उसे कोई 10 मिनट में बताने की ध्रष्टता कैसे कर सकता है!
फिर भी हम अपने को रोक नहीं पाते हैं कुछ कहने से.
आत्माराम जी महाराज की भावना मुनि वल्लभविजय को प्रकांड पंडित बनाने के आलावा शासन उद्धारक और पंजाब का रक्षक बनाने की थी. और हुआ भी वही क्योंकि पड़दादा गुरु का आशीर्वाद जो था. पंजाब केशरी का विरुद वल्लभविजय ने पाया. केशरी का अर्थ है : सिंह! गुरु वल्लभ की वाणी सिंह गर्जना जैसा असर करती है :
“ना मैं जैन हूँ, ना बौद्ध,
ना वैष्णव हूँ ना शैव,
ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान.”
मैं तो वीतराग परमात्मा को
खोजने के मार्ग पर
चलनेवाला मानव हूँ, यात्री हूँ.”
विश्व शान्ति दूत के जीवन के कई प्रसंग हैं जो उनकी महानता को बताते हैं:
१. एक सिख पोस्ट मास्टर गुरुदेव के व्याख्यान सुनकर उनके भक्त बन गए. गुरुदेव के विहार का समाचार सुनकर पोस्टऑफिस को ताला मारकर उसकी चाबियाँ गुरु के सामने रख दी. गुरुदेव को एक महीने के लिए विहार टालना पड़ा. गुरु लाचार होता है तो अपने भक्त के आगे, परिस्थितियों के आगे नहीं.
२. एक मुस्लिम भक्त अब्दुललतीफ़ ने गुरुदेव को भिक्षा लेने के लिए विनती की और कहा कि मैं आपको गाय का दूध वहोराउंगा. गुरुदेव ने शांति से उसकी विनती स्वीकार की और उसका मन जीत लिया.
३. बिनौली के हरिजनों ने गुरुदेव से कहा कि हिन्दू हमें पानी के लिए तरसाते हैं क्योंकि कुवें को हम स्पर्श नहीं कर पाते हैं. गुरुदेव ने श्रावकों को उनके लिए जल्द ही कुआ बना कर देने की व्यवस्था की.
४. रायकोट के 250 नगरजनों की विनती आई. पटियाला में गुरुदेव को पधारने की और कहा कि ये विनती सिर्फ जैनों कि है ऐसा नहीं है, इसमें सनातनी, आर्यसमाजी, सिख, हिन्दू और मुसलमान सभी शामिल हैं. लिखित विनती के नीचे सभी के हस्ताक्षर (सिग्नेचर) थे.
” ना मैं जैन हूँ, ना बौद्ध, ना वैष्णव हूँ ना शैव, ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान.” मैं तो वीतराग परमात्मा को खोजने के मार्ग पर चलनेवाला मानव हूँ, यात्री हूँ.”
ये शब्द उन्होंने वि. सं. 2010 भाई बीज के दिन अपने 84 वें जन्म दिवस पर कहे थे. और चौरासी पूरा करने से पहले ही वीतराग परमात्मा की शरण में चले गए मानो चौरासी का चक्कर ख़त्म कर दिया हो.
ऐसे गुरु का सान्निद्य हमें मिला, ये हमारा अहोभाग्य है.